दिवाली भारत में सबसे प्रमुख और उल्लासपूर्ण त्यौहारों में से एक है। इसे ‘रोशनी का त्यौहार’ भी कहा जाता है, क्योंकि इस दिन लोग अपने घरों और सार्वजनिक स्थानों को दीपक और विभिन्न प्रकार के विद्युत-बत्तियों से सजाते हैं। परंतु, इस त्यौहार की खुशी के साथ-साथ, प्रदूषण की समस्या भी एक बड़ी चिंता का विषय बन गई है। इस लेख में हम दिवाली से उत्पन्न प्रदूषण के विभिन्न पहलुओं, उसका पर्यावरण और स्वास्थ्य पर प्रभाव, और इससे बचने के उपायों पर चर्चा करेंगे।
दिवाली का महत्व और पारंपरिक प्रथाएं
दिवाली हिंदू कैलेंडर के अनुसार कार्तिक माह की अमावस्या को मनाई जाती है। इस त्यौहार का संबंध भगवान राम के अयोध्या लौटने और रावण पर विजय प्राप्त करने के उपलक्ष्य में होता है। इसे कृष्ण की नरकासुर पर विजय के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन लोग लक्ष्मी पूजा करते हैं, जो धन और समृद्धि की देवी मानी जाती हैं।
सरणी के इन पारंपरिक प्रथाओं में घर की साफ-सफाई, रंगोली बनाना, दीपक जलाना, मिठाइयां बांटना और पटाखे जलाना शामिल है। परंतु, आधुनिक समय में पटाखों का अत्यधिक उपयोग हमारे पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता जा रहा है।
पटाखों से उत्पन्न प्रदूषण
हवा का प्रदूषण
पटाखों से भारी मात्रा में धुएं और हानिकारक गैसें निकलती हैं, जिनमें मुख्य रूप से कार्बन डाइऑक्साइड (CO2), सल्फर डाइऑक्साइड (SO2), और नाइट्रोजन ऑक्साइड्स (NOx) शामिल हैं। इन गैसों का हमारी वायु गुणवत्ता पर गंभीर असर पड़ता है और वायुमंडल की संरचना को भी नुकसान पहुंचता है। दिवाली के दौरान हवा की गुणवत्ता में भारी गिरावट दर्ज की जाती है, जो खासकर बच्चों, बुजुर्गों और अस्थमा के रोगियों के लिए खतरनाक होती है।
ध्वनि प्रदूषण
पटाखों से निकलने वाली जोरदार आवाजें हमारे ध्वनि पर्यावरण को भी दूषित कर देती हैं। ये आवाजें 100 से 160 डेसीबेल तक हो सकती हैं, जो न केवल कानों के लिए हानिकारक होती हैं, बल्कि मानसिक तनाव और नींद में बाधा भी उत्पन्न कर सकती हैं। ध्वनि प्रदूषण का प्रभाव बच्चों, बुजुर्गों और पालतू जानवरों पर अधिक बुरा पड़ता है।
पर्यावरण पर प्रभाव
जमीन और जल प्रदूषण
पटाखों में इस्तेमाल होने वाले रसायन और धातुएं जब जल जाती हैं, तो वे हमारे जमीन और जल स्रोतों को भी प्रदूषित करती हैं। इनके अवशेष पर्यावरण में मिलकर मिट्टी की गुणवत्ता को बिगाड़ सकते हैं और जल स्रोतों में मिलकर उसे असुरक्षित बना सकते हैं।
वनस्पति और जीवों पर प्रभाव
प्रदूषण का असर केवल इंसानों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह वनस्पति और जीव-जंतुओं पर भी गंभीर प्रभाव डालता है। पटाखों से निकलने वाली विषैले धुएं और रसायनों से पौधों का विकास प्रभावित होता है, और वन्य जीवों को भी नुकसान पहुंचता है।
स्वास्थ्य पर प्रभाव
श्वसन संबंधी समस्याएं
पटाखों से निकलने वाली धूल और धुएं से श्वसन संबंधी बीमारियों की संभावना बढ़ जाती है। खासकर अस्थमा, सीओपीडी और ब्रॉन्काइटिस के रोगियों को दिवाली के दौरान ज्यादा दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
नेत्र और त्वचा संबंधी समस्याएं
पटाखों से निकलने वाले रसायन आंखों और त्वचा के लिए भी हानिकारक होते हैं। आंखों में जलन, लालिमा और सूजन जैसी समस्याएं आम हो जाती हैं। त्वचा पर भी जलन और खुजली की समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।
दिवाली के दौरान प्रदूषण कम करने के उपाय
हरित पटाखों का उपयोग
सरकार ने हरित पटाखों को बढ़ावा देने के अनेक प्रयास शुरू किए हैं। ये पटाखे अपेक्षाकृत कम धुआं और ध्वनि उत्पन्न करते हैं, जिससे वायु और ध्वनि प्रदूषनों में कमी आ सकती है।
सामाजिक जागरूकता
लोगों को दिवाली के दौरान प्रदूषण संबंदी खतरों के प्रति जागरूक करना अत्यंत आवश्यक है। विद्यालयों, कॉर्पोरेट्स और अन्य संस्थानों में कार्यशालाएं आयोजित करके लोगों को पर्यावरण के प्रति उनकी जिम्मेदारियों के बारे में शिक्षित किया जा सकता है।
स्वास्थ्य संबंधी सावधानियां
दिवाली के दौरान विशेषकर अस्थमा और अन्य श्वसन संबंधी रोगियों को मास्क पहनना चाहिए और ज्यादा धुएं वाले स्थानों से दूर रहना चाहिए। इसके अलावा, पटाखे जलाते समय सुरक्षा के सभी आवश्यक उपाय अपनाना चाहिए, जैसे आंखों की सुरक्षा के लिए चश्मा पहनना और हाथ में दस्ताने पहनना।
पटाखों का सीमित उपयोग
पटाखों को सीमित और नियंत्रित मात्रा में उपयोग किया जाना चाहिए। यह ना केवल प्रदूषण को कम करने में मदद करेगा, बल्कि हादसों की संभावना को भी न्यूनतम कर देगा। समाज में भी यह समझ विकसित की जानी चाहिए कि दिवाली मनाने के लिए पटाखों का असीमित प्रयोग आवश्यक नहीं है।
निष्कर्ष
दिवाली का त्यौहार हमें आनंद, खुशियाँ और नई उम्मीदें लेकर आता है, लेकिन इसके साथ उत्पन्न होने वाला प्रदूषण एक गंभीर समस्या का रूप ले चुका है। हमें समझना होगा कि स्वस्थ और स्वच्छ पर्यावरण हमारे भविष्य के लिए कितना महत्वपूर्ण है। दिवाली मनाते समय हमें पर्यावरण के प्रति हमारी जिम्मेदारियों को नहीं भूलना चाहिए और प्रदूषण कम करने के हर संभव प्रयास करने चाहिए।
उम्मीद है कि आने वाली पीढ़ियां दिवाली की खुशियां मनाते समय हमारी गलतियों से सीखेंगी और एक स्वच्छ और प्रदूषण मुक्त दिवाली का आनंद लेंगी।