Hindi Poems on Corruption या भ्रष्टाचारपर हिन्दी कविताएँ. इस आर्टिकल में बहुत सारी हिन्दी कविताओं का एक संग्रह दिया गया है जिनका विषय भ्रष्टाचार (Corruption) पर आधारित है.
Hindi Poems On Corruption – भ्रष्टाचार पर हिन्दी कविताएँ
Contents
- 1 Hindi Poems On Corruption – भ्रष्टाचार पर हिन्दी कविताएँ
- 1.1 अनुशासनहीनता और भ्रष्टाचार / काका हाथरसी
- 1.2 माठि जो भ्रष्टाचार / एम. कमल
- 1.3 चलो चलेँ / ओम पुरोहित ‘कागद’
- 1.4 भ्रष्टाचार / रामजी लाल घोड़ेला ‘भारती’
- 1.5 राजनीति ओ भ्रष्टाचार / शम्भुनाथ मिश्र
- 1.6 भ्रष्टाचार / काका हाथरसी
- 1.7 भ्रष्टाचार खत्म करने को/गोपाल कृष्ण भट्ट ‘आकुल’
- 1.8 भ्रष्टाचार / शैल चतुर्वेदी
- 1.9 Related Posts:
अनुशासनहीनता और भ्रष्टाचार / काका हाथरसी
बिना टिकट के ट्रेन में चले पुत्र बलवीर
जहाँ ‘मूड’ आया वहीं, खींच लई ज़ंजीर
खींच लई ज़ंजीर, बने गुंडों के नक्कू
पकड़ें टी. टी. गार्ड, उन्हें दिखलाते चक्कू
गुंडागर्दी, भ्रष्टाचार बढ़ा दिन-दूना
प्रजातंत्र की स्वतंत्रता का देख नमूना
माठि जो भ्रष्टाचार / एम. कमल
मुंहिंजूं अखियूं
तुंहिंजीअ माठि जे ॻाल्हियुनि में अची
दिल ऐं दिमाग़ खां छव्ब् वठण बिना
कुझु अहिड़ो ॿोले वेठियूं
जंहिं खां
प्यार जी सियासत जे बहस में
नओं मोडु़ अची वियो,
ऐं ख़्वाबनि निंड-रोको आंदोलन
शुरू कयो
अन्देशनि मोरचा कढिया
उम्मीदुनि ‘गुमान भरो’ हलचल हलाई
तुंहिंजे ख़ुशीअ जी जाच लइ
ॻाल्हाऊ साहुरनि जी
कामेटी जोड़ी वेई
जंहिं
अखियुनि जी ज़बान जी
ॻुझी, ख़मोशीअ जी
ख़ास लेबारेटरीअ में ”तपास“ जी
सिफ़ारिश कई।
असां जे खुले समाज
माठि जे भ्रष्टाचार खे
जड़ खां उखोड़ण जो संकल्पु दोहरायो
आवाज़ ई असां लाइ सभु कुझु आहिनि
भलि बेमाना हुजनि,
शायद भ्रष्ट लफ़ज़नि सां भरियल
असीं,
आवाज़नि जो भ्रष्टाचारु
क़बूल करे सघूं था, मगर
माठि जो?…
माठि जो हरगिज़ न।
चलो चलेँ / ओम पुरोहित ‘कागद’
समझदारोँ की भीड़ मेँ
नहीँ बचती संवेदना
बचती ही नहीं
…प्यार भरी मुस्कुराहट !
चलो वहां चलें
जहां सभी बच्चे होँ
पालनोँ मेँ झूलते
जो नाम पूछे बिना
मुस्कुराएं हमारी ओर !
उनके बीच
न ओसामा हो न ओबामा
न सैंसैक्स उठे न गिरे
न वोट डालने का झंझट
न भ्रष्टाचार न कपट !
वहां
सब के पास हो
सच मे करुण की निधि
कोई भी शीला
दीक्षित न हो
भ्रष्टाचार के खेल में !
भ्रष्टाचार / रामजी लाल घोड़ेला ‘भारती’
बधग्यो देश में
भारी भ्रष्टाचार
कुड़तो ही उतरवा लै
कोनी शिष्टाचार।
राजनीति ओ भ्रष्टाचार / शम्भुनाथ मिश्र
राजनीति भऽ गेल प्रदूषित सड़लो सब सरसर चढ़ि गेल
सड़ल जकर अँतरी भीतर धरि उँचके कुरसी तकरा लेल।।
राजनीति छल कूटनीति सब
बनल भ्रष्टनीतिक पर्याय
जनता बेचारा चालनिमे
दूहथु गऽ सरकारी गाय
भ्रष्टाचारक हाल समक्षे भेल जेना सब क्यौ निरुपाय
अस्त-व्यस्त सन्त्रस्त व्यवस्था भगवाने टा एक सहाय
देशक हितमे चिन्तनीय जे कोना कसायत एकर नकेल
सड़ल जकर अँतरी भीतर धरि उँचके कुरसी तकरा लेल
भ्रष्टाचारक अविश्रान्त
घोड़ा दौड़य सरपट अविराम
घून पसरि बढ़ि रहलै सबतरि
थिक आवश्यक लेब विराम
सीर पसरि कय गहे-गहे छै जकड़ि लेने सम्पूर्ण प्रदेश
आदर्शक धारा बहैत छल, आइ कहाबय सैह भदेश
भारत माता खिन्न भेल छथि पढ़लो पुत्र बनल बकलेल
सड़ल जकर अँतरी भीतर धरि उँचके कुरसी तकरा लेल
राजनीतिमे फफड़दलाली
जातिवाद ओ भ्रष्टाचार
जकर घोटाला जेहन पैघ हो
तकर तेहन आदर-सत्कार
पूर्वजकेर अरजल गरिमाकेँ फेकबा लय सबछी संलग्न
देशेकेर दिशा भसिआयल बुझा रहल नहि उत्तम लग्न
अन्धकार बढ़ि रहलै सबतरि अछि विवेक सबहक मरि गेल
सड़ल जकर अँतरी भीतर धरि उँचके कुरसी तकरा लेल
हाय हमर ई न्याय प्रणाली
अन्याये केर धारा तेज
कार्यपालिका आ विधायिका
भेल दुनू जनु हो निस्तेज
ब्लैकमनीकेर बल पर बहुतो संसदमे जा कऽ ओँघराय
भोट बेरमे ठकि-फुसिया कऽ दै अछि सबके फूँटि सुघाय
शिलान्यास उद्घाटन लाथेँ हो सरकारी खर्च अलेल
सड़ल जकर अँतरी भीतर धरि उँचके कुरसी तकरा लेल
राजनीति तिकड़ममे
भ्रष्टाचारक स्वर सबसँ बढ़ि उच्च
सब अतीत अति तीत बुझाइछ
आब भेल अछि काने बुच्च
भ्रष्टाचारे भेल प्रतिष्ठित, सदाचार ठोँठिआओल गेल
रक्षक सब रक्षाक नामपर अछि सबतरि भक्षक बनि गेल
राजनीति करबाक हेतु की भ्रष्टतन्त्र आवश्यक भेल?
सड़ल जकर अँतरी भीतर धरि उँचके कुरसी तकरा लेल
भ्रष्टाचार / काका हाथरसी
राशन की दुकान पर, देख भयंकर भीर
‘क्यू’ में धक्का मारकर, पहुँच गये बलवीर
पहुँच गये बलवीर, ले लिया नंबर पहिला
खड़े रह गये निर्बल, बूढ़े, बच्चे, महिला
कहँ ‘काका’ कवि, करके बंद धरम का काँटा
लाला बोले – भागो, खत्म हो गया आटा
भ्रष्टाचार खत्म करने को/गोपाल कृष्ण भट्ट ‘आकुल’
आओ हाथ हृदय पर रख, कुछ क्षण सोचें हम
थोड़े हम भी इसमें, जिम्मेदार हैं, सोचें हम
फिर निर्णय लें, पश्चात्ताप करें या प्रायश्चित या
भ्रष्टाचार खत्म करने को,जड़ तक पहुँचे हम
कहाँ नहीं है भ्रष्टाचार, मगर चुप रहते आये
आवश्यकता की खातिर हम,सब कुछ सहते आये
बढ़ा हौसला जिसका,उसने हर शै लाभ उठाया
क्या छोटे,क्या बड़े सभी,इक रौ में बहते आये
भ्रष्टाचारी गिद्धों ने जब,अपनी आँख जमाई
अत्याचारों के खिलाफ,संतों ने अलख जगाई
पहुँची है हुंकार आज इक,जनक्रांति की घर-घर
क्या बच्चे,क्या बूढ़े,तरुणों ने फिर ली अँगड़ाई
लगता है अब आएगा,इस मुहिम नतीजा कोई
देंगे यदि देनी ही पड़े अब,अग्नि परीक्षा कोई
रक्तहीन क्रांति की पहल, करी है हमने यारो,
हम कायर हैं,इस भ्रम में ना,रहे ख़लीफ़ा कोई
पहन मुखौटा करते हैं, अपमान राष्ट्र पर्वों का
शर्मिन्दा करते हैं,संस्कृति,उत्सव औ धर्मों का
नहीं हुए हम जागरूक सिर कफ़न बाँधना होगा
और हिसाब देना होगा,सबको अपने कर्मों का
आओ इस अनमोल समय का,मिल कर लाभ उठायें
कर गुज़रें इस संकट में सब,मिल कर हाथ बढ़ायें
राष्ट्रछवि बिगड़ी है,भ्रष्टाचार खत्म हो जड़ से
एक बनें मिल कर,इक जुट हों,इक आवाज़ उठायें
वंदेमातरम् गायें,सत्य मेव जयते दोहरायें
सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा गायें
राष्ट्रागान गूँजे घर ऑंगन,वैष्णव जनतो गूँजे
संविधान पर उठे न उँगली,ध्व्ज की शान बढ़ायें
आओ अंतर्मन के,तूफाँ रोकें,सोचें हम
थोड़े हम भी इसमें,जिम्मेदार हैं,सोचें हम
पीछे मुड़ कर ना देखें,संकल्प उठायें,सब मिल
भ्रष्टाचार खत्म करने को जड़ तक पहुँचे हम
भ्रष्टाचार / शैल चतुर्वेदी
हमारे लाख मना करने पर भी
हमारे घर के चक्कर काटता हुआ
मिल गया भ्रष्टाचार
हमने डांटा : नहीं मानोगे यार
तो बोला : चलिए
आपने हमें यार तो कहा
अब आगे का काम
हम सम्भाल लेंगे
आप हमको पाल लीजिए
आपके बाल-बच्चों को
हम पाल लेंगे
हमने कहा : भ्रष्टाचार जी!
किसी नेता या अफ़सर के
बच्चे को पालना
और बात है
इन्सान के बच्चे को पालना
आसान नहीं है
वो बोला : जो वक्त के साथ नहीं चलता
इंसान नहीं है
मैं आज का वक्त हूँ
कलयुग की धमनियों में
बहता हुआ रक्त हूँ
कहने को काला हूँ
मगर मेरे कई रंग हैं
दहेज़, बेरोज़गारी
हड़ताल और दंगे
मेरे ही बीस सूत्री कार्यक्रम के अंग हैं
मेरे ही इशारे पर
रात में हुस्न नाचता है
और दिन में
पंडित रामायण बांचता है
मैं जिसके साथ हूँ
वह हर कानून तोड़ सकता है
अदलत की कुर्सी का चेहरा
चाहे जिस ओर मोड़ सकता है
उसके आंगन में
अंगड़ाई लेती है
गुलाबी रात
और दरवाज़े पर दस्तक देती है
सुनहरी भोर
उसके हाथ में चांदी का जूता है
जिसके सर पर पड़ता है
वही चिल्लाता है
वंस मोर
वंस मोर
वंस मोर
इसलिए कहता हूँ
कि मेरे साथ हो लो
और बहती गंगा में हाथ धो लो
हमने कहा : गटर को गंगा कहते हो?
ये तो वक्त की बात है
जो भारत वर्ष में रह रहे हो
वो बोला : भारत और भ्रष्टाचार की राशि एक है
कश्मीर से कन्याकुमारी तक
हमारी ही देख-रेख है
राजनीति हमारी प्रेमिका
और पार्टी औलाद है
आज़ादी हमारी आया
और नेता हमारा दामाद है
हमने कहा : ठीक कहते हो भ्रष्टाचार जी!
दामाद चुनाव में खड़ा हो जाता है
और जीतने के बाद
उसकी अँगुली छोटी
और नाख़ून बड़ा हो जाता है
मगर याद रखना
दामादों का भविष्य काला है
बस, तूफ़ान आने ही वाला है
वो बोला : तूफ़ान आए चाहे आंधी
अपना तो एक ही नारा है
भरो तिज़ोरी चांदी की
जै बोलो महात्मा गांधी की
हमने कहा : अपने नापाक मुँह से
गांधी का नाम तो मत लो
वो बोला : इस ज़माने में
गांधी का नाम
मेरे सिवाय कौन लेता है
गांधी के सिद्धांतों पर चलने वालों को
जीने कौन देता है
मत भूलो
कि भ्रष्टाचार
इस ज़माने की लाचारी है
हमें मालूम है
कि आप कवि हैं
और आपने
कविता की कौन-सी लाइन
कहाँ से मारी है।
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