Chanakya Quotes in Hindi अर्थात इस article में आप पढेंगे, चाणक्य के अनमोल वचन. आप चाणक्य की जीवनी अर्थात biography भी पढ़ सकते हैं. चाणक्य की जीवनी को पढने के लिए यहाँ पर click कीजिये: Chanakya Biography in Hindi – चाणक्य की जीवनी
Chanakya Quotes in Hindi (चाणक्य के अनमोल वचन)
Contents
- विवेक को पाकर गुण सुंदरता को प्राप्त होते हैं, सोने में जड़ा हुआ रत्न अत्यत शोभित होता है ।
- जो व्यक्ति किसी गुणी व्यक्ति का आश्रित नहीं है, वह व्यक्ति ईश्वरीय गुणों से युक्त होने पर भी कष्ट झेलता है, जैसे अनमोल श्रेष्ठ मणि को भी सुवर्ण की जरूरत होती है अर्थात सोने में जड़े जाने के उपरान्त ही उसकी शोभा में चार चांद लग जाते हैं ।
- बीते हुए का शोक नहीं करना चाहिए और भविष्य में जो कुछ होने वाला है, उसकी चिन्ता नहीं करनी चाहिए । आए हुए समय को देखकर ही विद्वान लोग किसी कार्य में लगते हैं ।
- इस संसार रूपी विष-वृक्ष पर दो अमृत के समान मीठे फल लगते हैं । एक मधुर और दूसरा सत्संगति । मधुर बोलने और अच्छे लोगों की संगति करने से विष-वृक्ष का प्रभाव नष्ट हो जाता है और उसका कल्याण हो जाता है ।
- जहां राजा नहीं होता वहां सबल दुर्बल को खा जाते हैं, परंतु जहां राजा होता है वहां निर्बल भी सबल हो जाता है ।
- स्त्रियों का गुरु पति है । अतिथि सबका गुरु है । ब्राह्मण क्षत्रिय और वैश्य का गुरु है तथा चारों वर्णों का गुरु ब्राह्मण है ।
सावधानी
- भेद को गुप्त रखना सफलता की कुंजी है, अत: दिल का भेद जिगर को भी मत दो ।
- अपार वैभवशाली कुबेर भी यदि आमदनी से अधिक खर्च करे तो वह कंगाल हो जाता है ।
- जिसके जीवित रहने में विद्वान, मित्र और बंधु-बांधव जीते हैं, उसी का जीना सार्थक है । अपने लिए कौन नहीं जीता ।
- प्रजा का कोप सब कोपों से बड़ा होता है ।
- चावल से दस गुणा आटा (गेहूं का), आटे से दस गुणा दूध, दूध से दस गुणा गुणकारी घी होता है ।
- सांप, रजा सिंह, बच्चा, दूसरे का कुत्ता और मूर्ख इन सबको सोते से नहीं जगाना चाहिए ।
- मूर्ख व्यक्ति का कभी साथ नहीं करना चाहिए । वह बिना सींग वाला, दो पैरों से चलने वाला पशु है अर्थात मूर्ख और बुद्धिहीन है । जिस प्रकार दिखाई न देने पर कांटे अंधे व्यक्ति के शरीर में चुभकर पीड़ा पहुंचाते हैं, उसी प्रकार अज्ञानता से भरे मूर्ख व्यक्ति के वचनों को सुनकर मार्मिक पीड़ा होती है । ऐसे व्यक्ति को छोड़ना ही उत्तम है ।
- जीवन में सजगता बहुत जरूरी है इसीलिए चाणक्य का कहना है कि दो ब्राह्मणों के बीच से गुजरने का अर्थ यही है कि आप उनके वाद-विवाद में विघ्न डाल रहे हैं । उनत: कभी उनके बीच से होकर न निकलें । ब्राह्मण और अग्नि के बीच से गुजरने का अर्थ यही है कि आप उनके अग्निहोत्र में विश्व डाल रहे हैं । पति-पत्नी तथा स्वामी और सेवक के बीच में जब वार्तालाप चल रहा हो, तब बीच से गुजरकर आप उनकी बातों में विघ्न डालते हैं । इसी तरह बैल और हल के बीच से निकलते वक्त चोट लग जाने का भय बना रहता है । उनत : इन बातों का ध्यान रखना चाहिए ।
- मित्र के गुप्त रहस्यों को कभी प्रकट नहीं करना चाहिए । इससे केवल शत्रुता ही पैदा होती है ।
- जो प्रभु को पूरी तरह समर्पित होकर उसके नाम का निरंतर जाप करते हैं, उसे समरण करते रहते हैं, उनके सभी पाप रचत: ही नष्ट हो जाते हैं ।
- जो व्यक्ति जीवन में सावधान रहता है, उसे कभी भय नहीं सताता । भाव यही है कि परिश्रम से समृद्धि उगती है, प्रभु स्मरण से पापों का नाश होता है, सहनशीलता से संघर्ष का अंत होता है और सजगता से भय कभी नहीं होता ।
गुण
- एक ही सुगंधित फूल वाले वृक्ष से सारा वन सुगंधित हो जाता है, जैसे अच्छे पुत्र से कुल ।
- जिस प्रकार फूल में गंध, तिल में तेल, लकड़ी में आग दूध में घी, ईख में गुड होता है, उसी प्रकार शरीर में आत्मा विद्यमान है ।
- गुण सब स्थानों पर अपना आदर करा लेता है ।
- दान वृति मिष्ट भाषण, धैर्य और सम्यक ज्ञान के गुण जन्मजात होते हैं । यह अभ्यास से नहीं उगते हैं ।
- व्यक्तित्व की पहचान आदमी के शील-स्वभाव, उसके कर्म, उसके गुण और उसकी त्याग-भावना के द्वारा होती है ।
- प्राणी जैसा खाना खाता है, उसकी वैसी ही संतति होती है ।
- जो व्यक्ति कर्मठ हैं, परिश्रमी हैं, उद्योग-धंधा करने में आलसी नहीं हैं, निर्धनता उनके निकट नहीं आती । वे सदैव सुखी और प्रसन्न रहते हैं । परिश्रम द्वारा वे सुख-सम्पत्ति अर्जित करते हैं ।
- जो व्यक्ति सहज है, जिसमें किसी के प्रति कोई लगाव या दुराव नहीं है, वह व्यक्ति व्यर्थ की साज-संवार से अपने को अलग रखता है । जो चालाक और धूर्त होते हैं, वे ही मधुर वचन बोलते हैं, मूर्ख नहीं । साफ-साफ बोलने वाला कडुवा जरूर होता है, पर धोखेबाज नहीं होता ।
- जिस प्रकार चांद से रात की शोभा होती है, उसी प्रकार एक ही सुशील एवं विद्वान पुत्र से सारा कुल आनंदित हो जाता है ।
- सफल व्यक्ति वही है जो बगुले के समान अपनी सम्पूर्ण इन्द्रियों को संयम में रखकर अपना शिकार करता है । उसी के अनुसार देश, काल और अपनी सामर्थ को अच्छी प्रकार से समझकर अपने सभी कार्यों को करना चाहिए । बगुले से यह एक गुण ग्रहण करना चाहिए अर्थात एकाग्रता के साथ अपना कार्य करें तो सफलता अवश्य प्राप्त होगी अर्थात कार्य को करते वक्त अपना सारा ध्यान उसी कार्य की ओर लगाना चाहिए, तभी सफलता मिलेगी ।
- साग खाने से रोग बढ़ते हैं, दूध से शरीर बलवान होता है, घी से वीर्य (शक्ति) बढ़ता है और मांस खाने से मांस ही बढ़ता है ।
- जिसके पास गुण हैं, जिसके पास धर्म है, वही जीवित है । गुण और धर्म से विहीन व्यक्ति का जीवन निरर्थक है । भाव यही है कि जीवन में सद्गुणों और धर्म का विशेष महत्व है ।
- जो व्यक्ति विवेकशील है और विचार करके ही कोई कार्य सम्पन्न करता है, ऐसे व्यक्ति के गुण श्रेष्ठ विचारों के मेल से और भी सुंदर हो जाते हैं । जैसे सोने में जड़ा हुआ रत्न स्वयं ही अत्यन्त शोभा को प्राप्त हो जाता है ।
शिक्षा
- कुल के कारण कोई बड़ा नहीं होता है विद्या ही उसे पूजनीय बनाती है ।
- विद्यार्थियों को काम, क्रोध, लोभ, स्वादिष्ट पदार्थ, शृंगार, खेल, अतिसेवा और अधिक निद्रा इन आठ बातों से दूर रहना चाहिए ।
- अध्ययन, जप और दान कार्यों में कभी संतोष न करें ।
- मर्यादा का उल्लंघन कभी मत करो ।
- शत्रु के गुण ग्रहण कर लो और गुरु के दुर्गुण छोड़ दो ।
- जिसके मन में पाप है वह सौ बार तीर्थ स्नान के उपरांत भी पवित्र नहीं हो सकता । जिस प्रकार मदिरा पात्र जलाने पर भी शुद्ध नहीं होता ।
- जहां मूर्खों की पूजा नहीं होती, जहां धान्य भविष्य के लिए संग्रहित किया हुआ है, जहां स्त्री-पुरुष में कलह नहीं होता, वहां मानो लक्ष्मी स्वयमेव आई हुई
- पृथ्वी पर तीन रत्न हैं, जल, अन्न और सुभाषित । मूर्ख लोग ही पाषाण खंडों को रतन का नाम देते हैं ।
- सज्जनों का संग स्वर्ग में निवास के समान है ।
- ऋण, शत्रु और व्याधि इन्हें जड़ से नष्ट कर देना चाहिए ।
- जो व्यक्ति दरिद्र रहते हुए भी सामर्थ के अनुसार दान देकर दूसरों के कष्टों का निवारण करता है, उसका दान समृद्ध व्यक्ति के दान से श्रेष्ठ होता है । शालीनता के साथ संकट काल को सहन करने वाला व्यक्ति, उरपने संकटों पर विजय प्राप्त करता है तथा सुशीलता कष्ट को दूर करती है । इसी प्रकार लानी व्यक्ति अज्ञान का नाश करता है ।
- धर्मोपदेशक के प्रवचन सुनकर ही बहुत-से भक्तजन अपना जीवन संवार लेते हैं । गुरु भी जब शिक्षा देता है, तब वह अपने शिष्यों को बोलकर ही विद्यादान देता है और शिष्य श्रवण करके ही ज्ञान प्राप्त करते हैं ।
- मनुष्य के लिए यह जरूरी है कि किसी भी आर्थिक व्यवहार में उसे लिखा-पढ़ी कर लेनी चाहिए । इसमें उसे जरा भी संकोच नहीं करना चाहिए । इसके अलावा विद्या लेते समय, भोजन करते समय संकोच कभी नहीं करना चाहिए ।
अहंकार
- अत्यंत घमंड से रावण मारा गया, अत्यंत दान से राजा बलि बांधा गया । अत : सदा याद रखें कि अति हर चीज की हर हालत में बुरी होती है ।
- धन और शक्ति के अहंकार से भरा व्यक्ति अपना विवेक खो बैठता है । उसे केवल अपना स्वार्थ ही सर्वोपरि दिखाई देता है । उसकी दशा उस अंधे के समान होती है, जो जन्म से अंधा होता है ।
- जो व्यक्ति दया, दान, धर्म से वंचित होकर गलत तरीके से कमाए धन पर अहंकार करके इतराता है, वह नीच है । ऐसे व्यक्ति को अपने शरीर से मोह नहीं करना चाहिए । भाव यह है कि मनुष्य को इस शरीर से अच्छे कर्म करने चाहिए ।
धर्म
- जन्मदाता, यज्ञोपवीत संस्कार कराने वाला, गुरु, संकट काल में रक्षक और अन्नदाता ये पांचों पितातुल्य हैं ।
- धार्मिक प्रसंग सुनकर और श्मशान जाने पर मन में जो वैराग्य उत्पन्न होता है, यदि वह स्थायी हो जाए तो मनुष्य संसार सागर से पार हो जाता है ।
- धन से धर्म की रक्षा की जाती है, योग अर्थात अभ्यास से विद्या की रक्षा होती है, कोमलता से राजा की रक्षा होती है और श्रेष्ठ स्त्री द्वारा घर की रक्षा होती
- धर्म सुख का मूल और राज्य धर्म का मूल है ।
- साधु-महात्माओं के संसर्ग से पुत्र, मित्र, बंधु और जो अनुराग करते हे, वे संसार-चक्र से छूट जाते हैं और उनके कुल- धर्म से, उनका कुल उज्ज्वल हो जाता है ।
- जो पिता अपनी संतान पर अपना कर्ज छोड्कर जाता है, वह शत्रु के समान है, जो माता पतन के मार्ग पर चल रही है, वह संतान के लिए शत्रु है, जो स्त्री सुंदर है, उसकी रक्षा में पति को बहुत कठिनाई झेलनी पड़ती है क्योंकि सभी की कुदृष्टि उस पर रहती है और यदि संतान ही मूर्ख है तो वह माता-पिता के लिए शत्रु से कम नहीं होती ।
- सदगति और धर्माचरण करते हुए नित्य परमात्मा को याद करना चाहिए और इस संसार की नश्वरता को समझना चाहिए । सद्संगति के सामने दुष्टों का साथ कुछ भी नहीं है ।
क्षमा
- जिसके हाथ में क्षमा का धनुष है, दुर्जन उसका क्या कर लेगा ।
- समुद्र की मर्यादा प्रसिद्ध है कि उसमें कितना ही जल गिरता जाए, पर वह अपनी मर्यादा नहीं छोड़ता, लेकिन प्रलय काल में सागर की मर्यादा भी छिन्न-भिन्न होकर बिखर जाती है, मगर साधु पुरुष अपने कर्तव्य पथ से कभी नहीं हटते । अत: सागर की विशालता साधु पुरुष के हृदय की विशालता के सामने तुच्छ है ।
- बड़ी-बड़ी भयानक लहरें धरती को लील जाती हैं, परंतु साधु पुरुष कठिन-से-कठिन परिस्थिति में भी अपनी मर्यादा को नहीं छोड़ते, इसीलिए साधु पुरुष को सागर से भी गंभीर और मर्यादित माना गया है ।
विचार करने योग्य बातें
- जैसा देश वैसी भाषा, जैसा राजा वैसी प्रजा, जैसी भूमि वैसा जल, जैसा बीज वैसा अंकुर ।
- राजा का, विद्वान का और कन्या के पिता का वचन अथवा कथन अटल होता है । इनके वचन लौटाए नहीं जा सकते । इसी प्रकार अच्छे कर्म के लिए बार-बार नहीं कहा जाता ।
- तालाब का पानी एक ही स्थान पर रुका रहेगा तो वह सड़ जाएगा । इसी प्रकार उपार्जित धन में से दान नहीं किया जाएगा तो उसका महत्त्व ही खत्म हो जाएगा ।
- बुद्धिमान व्यक्ति को बार-बार यह सोचना चाहिए कि हमारे मित्र कितने हैं, हमारा समय कैसा है – अच्छा है या बुरा और यदि बुरा है तो उसे अच्छा कैसे बनाया जाए, हमारा निवास-स्थान कैसा है (सुखद, अनुकूल अथवा विपरीत), हमारी आय कितनी है और व्यय कितना है, मैं कौन हूं- आत्मा हूं अथवा शरीर, स्वाधीन हूं अथवा पराधीन तथा मेरी शक्ति कितनी है ।
- धर्मानुष्ठान (यज्ञ, धर्मशालाएं, तीर्थाटन, मंदिर निर्माण, पूजा आदि) के लिए धन अनिवार्य होता है । बिना अभ्यास के विद्या भी पास नहीं टिकती । राजा अपने मृदु स्वभाव से ही प्रजा को अपने अनुकूल करता है और कुलीन स्त्रियों से ही घर-गृहस्थी की मर्यादा बनी रहती है । अत: इसका ध्यान रखना बहुत जरूरी है ।
- मूर्खता के वशीभूत होकर ही लोग आप्त ज्ञान को व्यर्थ बताते हैं, जबकि ज्ञान कोई भी व्यर्थ नहीं होता । ऐसा वे ही लोग कहते हैं जो वेदों में छिपे ज्ञान के मर्म को समझ नहीं पाते । जिन्हें शास्त्रों का विश्लेषण करना नहीं उगता ।
- जीवन और मृत्यु, कर्मों का भोग, नरक वास और परम शक्ति का सान्निध्य, मनुष्य अकेला ही प्राप्त करता है । कोई उसके साथ न तो उगता है, न जाता है । कोई उसका सहायक नहीं होता । सब भाई-बंधु यही रह जाते हैं । वह अकेला आता है और अकेला ही जाता है । जीवन का यही चक्र है, जो शाश्वत है, सनातन है ।
- भाग्य से अधिक कुछ नहीं मिलता । भाग्य से ही श्रेष्ठ पत्नी, अच्छा भोजन और विपुल सम्पत्ति प्राप्त होती है । इन्हें जितना और जैसा मिले, उसी पर संतोष करना चाहिए । दूसरी ओर विद्या संग्रह की कोई सीमा नहीं होती । जप और दान करने-कराने से यश प्राप्त होता है ।
- पिता जीवन देता है, पुरोहित समाज में प्रतिष्ठित करने के लिए यज्ञोपवीत सरकार कराता है, आचार्य ज्ञान देकर जीवन और जगत के समरत कार्य-व्यापार से परिचित कराता है, अन्न उत्पन्न करने वाला कृषक हमारे लिए भोजन की है व्यवस्था करता है और राजा हमारी शत्रु से रक्षा करके हमें भयमुक्त करता । अत: समाज ने इन्हें पिता अर्थात-पालन करने वाले का उच्च स्थान दिया है ।
- उत्तम कर्म करते हुए एक पल का जीवन भी श्रेष्ठ है, परंतु दोनों लोकों (लोक-परलोक) में दुष्कर्म करते हुए हजारों वर्षों का जीना भी श्रेष्ठ नहीं है ।
- मनुष्य यदि अधर्म के मार्ग पर चलता है तो उसे अपने जीवन में उपयुक्त दुःखों का सामना करना पड़ता है ।
- बोलचाल अथवा वाणी में पवित्रता, मन की स्वच्छता और यहां तक कि इन्द्रियों को वश में रखकर पवित्र रहने का भी कोई महत्त्व नहीं, जब तक कि मनुष्य के मन में जीवमात्र के लिए दया की भावना उत्पन्न नहीं होती । सच्चाई यह है कि परोपकार ही सच्ची पवित्रता है । बिना परोपकार की भावना के मन, वाणी और इन्द्रियां पवित्र नहीं हो सकती । व्यक्ति को चाहिए कि वह अपने मन में दया और परोपकार की भावना को बढ़ाए ।
- जिस जीवन में मनुष्य को मान-सम्मान नहीं मिलता, वह जीवन धन से भरपूर होने पर भी व्यर्थ है । धन नष्ट हो जाता है, परंतु आदमी का यश उसके मरने के उपरान्त भी अमर रहता है । है
- भोग से आशय यहां यह कि धन का उपयोग जब तक सत्कर्मो में नहीं किया जाता, तब तक धन की शोभा नहीं हो सकती । इसी प्रकार सौंदर्य तभी शोभा पाता है, जब उसे धारण करने वाला गुणी भी हो । विद्या वही शोभित होती है, जो अपने लक्ष्य को प्राप्त कर ले और आदमी का शील-स्वभाव उसके कुल की शोभा बढ़ाने वाला होता है ।
- घर आनन्द से युक्त हो, संतान बुद्धिमान हो, पत्नी मधुर वचन बोलने वाली हो, इच्छापूर्ति के लायक धन हो, पत्नी के प्रति प्रेम भाव हो, आज्ञाकारी सेवक हो, अतिथि का सत्कार और श्री शिव का पूजन प्रतिदिन हो, घर में मिष्ठान व शीतल जल मिला करे और महात्माओं का सत्संग प्रतिदिन मिला करे तो ऐसा गृहस्थाश्रम सभी आश्रमों से अधिक धन्य है । ऐसे घर का स्वामी अत्यत सुखी और सौभाग्यशाली होता है ।
- जल और अन्न के बिना आदमी का जीवन संभव नहीं है और मधुर वचनों के बिना समाज में विचरण करना मुश्किल है । कटु वचन कहने वाले का कोई आदर नहीं करता ।
- पान । में तेल, दुष्टों में गोपनीय बातें, उत्तम पात्र को दिया गया दान और बुद्धिमान के पास शास्त्र-ज्ञान यदि थोड़ा भी हो तो स्वयं वह अपनी शक्ति से विस्तार पा जाता है ।
काम
- सुकर्म वह नहीं है जिससे केवल राजा का मनोरंजन हो, वास्तविक सुकर्म वह है जिससे प्रजा सुखी व संपन्न हो ।
- काम-वासना में लिप्त व्यक्ति धीरे- धीरे व्यभिचारी हो जाता है । काम-वासना एक भयानक रोग की भांति उसे जकड़ लेती है । मोह में पड़ा व्यक्ति अंधा हो जाता है । उसे भला-बुरा कुछ दिखाई नहीं देता । क्रोधी व्यक्ति, क्रोध रूपी अग्नि में स्वयं तो जलता ही है, दूसरी को भी जलाता है । इस संसार में यदि कहीं सुख और आनंद है तो ज्ञानी बनने में है ।
दुष्ट
- दुर्जन लाख शिक्षा देने पर भी साधु नहीं हो सकता ।
- सर्प के दांत में विष होता है, मक्खी के सिर में विष होता है, बिच्छू की पूंछ में विष होता है । इन सभी के पूरे शरीर में विष नहीं होता, किंतु दुष्टता पूर्णत: विषैली होती है, अत: दुष्टों से बचना चाहिए ।
- पापकर्म और चुगली करना, दोनों ही मानव-जीवन के बड़े दोष माने गए हैं । इन्हें करने वाला मनुष्य ऋषि-मुनि होने पर भी चांडाल होता है, जैसे पक्षियों में कौआ और पशुओं में कुत्ते को नीच माना गया है ।
क्रोध
- क्रोध अर्थात पलटकर आक्रमण होने से सदैव झगड़ा बढ़ता है । यदि व्यक्ति दूसरे की कटु बात का जवाब न दे और सहनशील बना रहे तो सामने वाले का क्रोध स्वत: ही नष्ट हो जाता है । झगड़ा बढ़ नहीं पाता । झगड़ा तभी बढ़ता है जब ईंट का जवाब पत्थर से दिया जाता है ।
दान
- जो व्यक्ति दुःखी ब्राह्मणों पर दयामय होकर अपने मन से दान देता है, वह अनन्त होता है । हे राजन! ब्राह्मणों को जितना दान दिया जाता हए, वह उतने से कई गुणा अधिक होकर वापस मिलता है ।
- सुपात्र को ही दान देना चाहिए और सभी जीवों पर दया करनी चाहिए । उनकी हत्या नहीं करनी चाहिए । ये दोनों दान कभी नष्ट नहीं होते इसीलिए इसे सर्वश्रेष्ठ दान कहा गया है ।
- अनेक जन्मों से किया गया दान, अध्ययन और तप का अभ्यास, अगले जन्म में भी उसी अभ्यास के कारण मनुष्य को सत्कर्मो की ओर बढ़ाता है अर्थात वह दूसरे जन्म में भी शास्त्रों के अध्ययन को दान देने की प्रवृत्ति को और तपस्यारत जीवन को दूसरों के पास तक पहुंचाता है ।
सुख-दुःख
- संसार दुःखों का सागर है । यहां हर पल, हर क्षण कोई-न-कोई दुःख मनुष्य को सताता रहता है, जलाता रहता है । ऐसे दुःखमय संसार में यदि सुपुत्र की, पतिव्रता स्त्री की और सज्जनों की संगति उसे मिल जाए तो उसकी चिंताएं, उसका दुःख, उसकी अशान्ति को बहुत कुछ राहत मिल सकती है ।
- यह संसार दुःखों का सागर है । इस संसार में एक भी ऐसा व्यक्ति नहीं है, जिसे दुःख न हुआ हो । सभी व्यक्तियों में कुछ-न-कुछ अवगुण अथवा बुरी आदतें पाई जाती हैं । इस संसार में एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं है जो सदैव सुखी रहता हो । उसे किसी-न-किसी तरह के संकटों का, दुखों का, रोगों का, बुरी आदतों का सामना करना ही पड़ता है । दुःख और सुख तो साथ-साथ लगे रहते हैं । जैसे रात के बाद दिन और दिन के बाद रात आती है ।
अधिकता बुरी है
- हर चीज की एक सीमा होती है । सीमा से बाहर जाने पर प्राय: नुकसान ही होता है । उदाहरण देते हुए चाणक्य ने बताया कि अनुपम सुंदरी होने के कारण सीता का हरण हुआ और अहंकारी होने के कारण रावण का वध हुआ । इसी तरह असुरराज बलि ने दान का वचन देकर वामन को अपना सर्वस्व दान कर दिया ।
लोभ
- विषय भोग मुक्ति में बाधक और जीवन के लिए दीमक के समान है । क्षमा, दया सरलता, सच्चाई जीवन के लिए अमृत सम हैं ।
- मांगने से सभी डरते हैं कि कोई उनसे कुछ मांग न बैठे क्योंकि देना कोई नहीं चाहता । ऐसा ही है यह स्वार्थी संसार!
कर्तव्य
- राजा का कर्तव्य है कि वह अपनी प्रजा को पाप कर्म की ओर न बढ़ने दे, पुरोहित अथवा मंत्री का कर्तव्य है कि वह राजा को पाप की ओर प्रवृत्त न होने दे और इसी तरह पति का कर्तव्य है कि वह अपनी पत्नी को गलत राह पर न जाने दे तथा गुरु का कर्तव्य है कि वह अपने शिष्य को पाप कर्म न करने दे । यदि वे ऐसा नहीं करते तो राजा को प्रजा का, पुरोहित को राजा का, पति को पत्नी का और गुरु को अपने शिष्य का पाप स्वयं भुगतना पड़ता है ।
मन
- मन को विषयहीन अर्थात माया-मोह से मुक्त करके ही मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है क्योंकि मन में विषय-वासनाओं के आवागमन के कारण ही मनुष्य माया-मोह के जाल में आसक्त रहता है । अत: मोक्ष (जीवन-मरण) से छुटकारा पाने के लिए मन का विकाररहित होना आवश्यक है ।
- मन की इच्छा के अनुसार सारे सुख किसको मिलते हैं? अर्थात किसी को नहीं मिलते । इससे यह सिद्ध होता है कि ‘दैव’ के ही बस में सब कुछ है । अत: संतोष का ही आश्रय लेना चाहिए । संतोष सबसे बड़ा धन है । सुख और दुःख में उसे समरस रहना चाहिए । कहा भी है- ‘जाहि विध राखे राम, ताहि विध रहिए ।’
नीचे चाणक्य के कुछ quotes अंग्रेजी भाषा में भी दिए गए हैं.
- He who runs away from a fearful calamity, a foreign invasion, a terrible famine, and the companionship of wicked men is safe.
- Do not keep company with a fool for as we can see he is a two-legged beast.Like an unseen thorn he pierces the heart with his sharp words.
- By means of hearing one understands dharma, malignity vanishes, knowledge is acquired, and liberation from material bondage is gained.
- The world’s biggest power is the youth and beauty of a woman.
- Beauty is spoiled by an immoral nature; noble birth by bad conduct;learning, without being perfected;andwealth by not being properly utilised.
- Books are as useful to a stupid person as a mirror is useful to a blind person.
- Never make friends with people who are above or below you in status. Such friendships will never give you any happiness.
- Avoid him who talks sweetly before you but tries to ruin you behind your back, for he is like a pitcher of poison with milk on top.
- We should not feel pride in our charity, austerity,valour,scriptural knowledge, modestyandmorality for the world is full of the rarest gems.
- Purity of speech,of the mind,of the senses, and of a compassionate heart are needed by one who desires to rise to the divine platform.
- As soon as the fear approaches near, attack and destroy it.
- He who has wealth has friends and relations; he alone survives and is respected as a man.
- The earth is supported by the power of truth;it is the power of truth tht makes the sun shine andthe winds blow; indeed all things rest upon truth.
- Who realises all the happiness he desires? Everything is in the hands of God. Therefore one should learn contentment.
- The world’s biggest power is the youth and beauty of a woman.
- God is not present in idols. Your feelings are your god. The soul is your temple.
- A thing may be dreaded as long as it has not overtaken you, but once it has come upon you, try to get rid of it without hesitation.
- Do not be very upright in your dealings for you would see by going to the forest that straight trees are cut down while crooked ones are left standing.
- Eschew wicked company and associate with saintly persons. Acquire virtue day and night, and always meditate on that which is eternal forgetting that which is temporary.
- Education is the best friend. An educated person is respected everywhere. Education beats the beauty and the youth.
- The wise man should restrain his senses like the crane and accomplish his purpose with due knowledge of his place, time and ability.
- A person should not be too honest. Straight trees are cut first and honest people are screwed first.
- There is some self-interest behind every friendship. There is no friendship without self-interests. This is a bitter truth.
- God is not present in idols. Your feelings are your god. The soul is your temple.
- A man is born alone and dies alone;and he experiences the good and bad consequences of his karma alone;and he goes alone to hell or the Supreme abode.
- Learning is a friend on the journey; a wife in the house; medicine in sickness; and religious merit is the only friend after death.
- Our bodies are perishable,wealth is not at all permanent and death is always nearby.Therefore we must immediately engage in acts of merit.
- Even as the unborn babe is in the womb of his mother, these five are fixed as his life destiny: his life span, his activities, his acquisition of wealth and knowledge, and his time of death.
- He who lives in our mind is near though he may actually be far away;but he who is not in our heart is far though he may really be nearby.
- He who is prepared for the future and he who deals cleverly with any situation that may arise are both happy; but the fatalistic man who wholly depends on luck is ruined.
- Accumulated wealth is saved by spending just as incoming fresh water is saved by letting out stagnant water.
- All the creatures are pleased by loving words; and therefore we should address words that are pleasing to all, for there is no lack of sweet words.
- A learned man is honoured by the people.A learned man commands respect everywhere for his learning. Indeed,learning is honoured everywhere.
- What good can the scriptures do to a man who has no sense of his own? Of what use is as mirror to a blind man?
- Time perfects all living beings as well as kills them; it alone is awake when all others are asleep. Time is insurmountable.
- Purity of speech, of the mind, of the senses, and of a compassionate heart are needed by one who desires to rise to the divine platform.
- Learning is like a cow of desire. It, like her, yields in all seasons. Like a mother, it feeds you on your journey. Therefore learning is a hidden treasure
- The earth is supported by the power of truth; it is the power of truth that makes the sun shine and the winds blow; indeed all things rest upon truth.
- Poverty, disease, sorrow, imprisonment and other evils are the fruits borne by the tree of one’s own sins.
- The fragrance of flowers spreads only in the direction of the wind. But the goodness of a person spreads in all direction.
- The power of a king lies in his mighty arms;that of a brahmana in his spiritual knowledge; and that of a woman in her beauty youth and sweet words.
- Swans live wherever there is water, and leave the place where water dries up; let not a man act so — and comes and goes as he pleases.
- Sinfully acquired wealth may remain for ten years; in the eleventh year it disappears with even the original stock.
- Low class men desire wealth;middle class men both wealth and respect;but the noble,honour only;hence honour is the noble man’s true wealth.
- Do not reveal what you have thought upon doing, but by wise council keep it secret being determined to carry it into execution.
- There is no austerity equal to a balanced mind, and there is no happiness equal to contentment; there is no disease like covetousness, and no virtue like mercy.
- He who gives up shyness in monetary dealings, in acquiring knowledge, in eating and in business, becomes happy.
- As a single withered tree, if set aflame, causes a whole forest to burn, so does a rascal son destroy a whole family.
- The happiness and peace attained by those satisfied by the nectar of spiritual tranquillity is not attained by greedy persons restlessly moving here and there.
- There are three gems upon this earth; food, water, and pleasing words — fools (mudhas) consider pieces of rocks as gems.
- The poor wish for wealth; animals for the faculty of speech; men wish for heaven; and godly persons for liberation.
- Never make friends with people who are above or below you in status. Such friendships will never give you any happiness.
- He who is overly attached to his family members experiences fear and sorrow, for the root of all grief is attachment. Thus one should discard attachment to be happy.
- As long as your body is healthy and under control and death is distant, try to save your soul; when death is imminent what can you do?
- A man is born alone and dies alone; and he experiences the good and bad consequences of his karma alone; and he goes alone to hell or the Supreme abode.
- A man is born alone and dies alone; and he experiences the good and bad consequences of his karma alone; and he goes alone to hell or the Supreme abode.
- When one is consumed by the sorrows of life, three things give him relief: offspring, a wife, and the company of the Lord’s devotees.
- As soon as the fear approaches near, attack and destroy it.
- Purity of speech,of the mind, of the senses,and the of a compassionate heart are needed by one who desires to rise to the divine platform.
- Those base men who speak of the secret faults of others destroy themselves like serpents that stray onto anthills.
- The man who remains a fool even in advanced age is really a fool, just as the Indra-Varuna fruit does not become sweet no matter how ripe it might become.
- As a calf follows its mother among a thousand cows, so the (good or bad) deeds of a man follow him.
- The biggest guru-mantra is: never share your secrets with anybody. It will destroy you.
- She is a true wife who is clean (suci), expert, chaste, pleasing to the husband, and truthful.
- Once you start a working on something, don’t be afraid of failure and don’t abandon it. People who work sincerely are the happiest.
- The learned are envied by the foolish; rich men by the poor; chaste women by adulteresses; and beautiful ladies by ugly ones
- Education is the best friend. An educated person is respected everywhere. Education beats the beauty and the youth.
- He who wears unclean garments, has dirty teeth, is a glutton, speaks unkindly and sleeps after sunrise – although he may be the greatest personality — will lose the favour of Lakshmi.
- Generosity, pleasing address, courage and propriety of conduct are not acquired, but are inbred qualities.
- Even if a snake is not poisonous, it should pretend to be venomous.
- We should always speak what would please the man of whom we expect a favour, like the hunter who sings sweetly when he desires to shoot a deer.
- He who befriends a man whose conduct is vicious, whose vision impure, and who is notoriously crooked, is rapidly ruined.
- There is some self-interest behind every friendship. There is no friendship without self-interests. This is a bitter truth.
- He who nurtures benevolence for all creatures within his heart overcomes all difficulties and will be the recipient of all types of riches at every step.
- Wealth, a friend, a wife, and a kingdom may be regained; but this body when lost may never be acquired again.
- At the time of the pralaya(universal destruction)the oceans are to exceed their limits and seek to change,but a saintly man never changes.
- A man attains greatness by his merits, not simply by occupying an exalted seat. Can we call a crow an eagle (garuda) simply because he sits on the top of a tall building.
- Moral excellence is an ornament for personal beauty;righteous conduct,for high birth; success for learning;and proper spending for wealth.
- He who forsakes his own community and joins another perishes as the king who embraces an unrighteous path.
- Beauty is spoiled by an immoral nature;noble birth by bad conduct; learning, without being perfected; and wealth by not being properly utilized.
- Drop the idea that attachment and love are one thing. They are enemies. It is attachment that destroys all love.
- He who lives in our mind is near though he may actually be far away; but he who is not in our heart is far though he may really be nearby.
- The cuckoos remain silent for a long time (for several seasons)until they are able to sing sweetly(in the Spring)so as to give joy to all.
- Purity of speech, of the mind, of the senses, and a compassionate heart are needed by one who desires to rise to the divine platform.
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