Birthday Poems in Hindi या जन्मदिन पर हिन्दी कविताएँ. जन्मदिन किसी के भी जीवन का हर वर्ष आने वाला एक ऐसा दिन होता है, जब उसे सभी लोग, इस दिन की शुभकामनाएं देते हुए, एक नयें वर्ष की शुरुआत की बधाई देते हैं. हमने इस अवसर पर कविताओं का एक संग्रह आपके लिए तैयार किया है.
Birthday Poems in Hindi – जन्मदिन पर हिन्दी कविताएँ
Contents
- 1 Birthday Poems in Hindi – जन्मदिन पर हिन्दी कविताएँ
- 1.1 गांधीजी के जन्मदिन पर / दुष्यंत कुमार
- 1.2 तुम्हारे जन्मदिन पर / अनिल जनविजय
- 1.3 जन्मदिन / निदा नवाज़
- 1.4 जन्म दिन फिर आ रहा है / हरिवंशराय बच्चन
- 1.5 अपने जन्मदिन पर-3 / प्रेमचन्द गांधी
- 1.6 तुम्हारे जन्मदिन पर / प्रेमचन्द गांधी
- 1.7 जन्म-दिन के दिन / रवीन्द्र दास
- 1.8 जन्म दिन पर / सुदर्शन वशिष्ठ
- 1.9 अमित के जन्म-दिन पर / हरिवंशराय बच्चन
- 1.10 जन्म दिन मुबारक हो माँ! / भावना कुँअर
- 1.11 जन्मदिन मुबारक हो अमृता ….. / हरकीरत हकीर
- 1.12 राजीव के जन्मदिन पर / हरिवंशराय बच्चन
- 1.13 छोटे भाई के जन्मदिन पर / अनुपमा पाठक
- 1.14 सस्मिता के जन्मदिन पर / हरिवंशराय बच्चन
- 1.15 जन्म-दिन का गीत / शेरजंग गर्ग
- 1.16 जन्मदिन बधाई / संजय अलंग
- 1.17 कल सवेरे मेरे जन्मदिन में / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- 1.18 Related Posts:
गांधीजी के जन्मदिन पर / दुष्यंत कुमार
मैं फिर जनम लूंगा
फिर मैं
इसी जगह आउंगा
उचटती निगाहों की भीड़ में
अभावों के बीच
लोगों की क्षत-विक्षत पीठ सहलाऊँगा
लँगड़ाकर चलते हुए पावों को
कंधा दूँगा
गिरी हुई पद-मर्दित पराजित विवशता को
बाँहों में उठाऊँगा ।
इस समूह में
इन अनगिनत अचीन्ही आवाज़ों में
कैसा दर्द है
कोई नहीं सुनता !
पर इन आवाजों को
और इन कराहों को
दुनिया सुने मैं ये चाहूँगा ।
मेरी तो आदत है
रोशनी जहाँ भी हो
उसे खोज लाऊँगा
कातरता, चु्प्पी या चीखें,
या हारे हुओं की खीज
जहाँ भी मिलेगी
उन्हें प्यार के सितार पर बजाऊँगा ।
जीवन ने कई बार उकसाकर
मुझे अनुलंघ्य सागरों में फेंका है
अगन-भट्ठियों में झोंका है,
मैने वहाँ भी
ज्योति की मशाल प्राप्त करने के यत्न किये
बचने के नहीं,
तो क्या इन टटकी बंदूकों से डर जाऊँगा ?
तुम मुझकों दोषी ठहराओ
मैने तुम्हारे सुनसान का गला घोंटा है
पर मैं गाऊँगा
चाहे इस प्रार्थना सभा में
तुम सब मुझपर गोलियाँ चलाओ
मैं मर जाऊँगा
लेकिन मैं कल फिर जनम लूँगा
कल फिर आऊँगा ।
तुम्हारे जन्मदिन पर / अनिल जनविजय
तुम्हारे जन्मदिन पर
हँसे हवा
हँसे फूल
हँसे पृथ्वी
जल ऋतु अंतरिक्ष
हँसें सितारे हँसे कूल
और इनके साथ साथ
हँसो मेरी तुम
हँसे तुम्हारा दुकूल
जन्मदिन / निदा नवाज़
तीन फ़रवरी
उदास सांझ
शीतल मौन
अंधियाते आकाश में
दूर बहुत दूर
वह तारा गिरा
मैंने खिड़की का
दूजा पट भी खोला
और टूटते टते तारे में
उलझ गया
गुमसुम …
अपने पूर्वकाल के गगन पर
जहां हर क्षण ने मुझे
एक नये तारे के
गिरने की सूचना दी
जहां केवल दु:ख-दर्द
रिसते घाव
दम-घुटती इच्छाएं
और
भय और लज्जा में
डूबा प्रेम
मैं रुआंसा हो गया
भयभीत हुआ
मेरे समक्ष
मेरे मित्र
चेहरों पर मुस्कान लिए
दे रहे हैं
दीप जलाकर मुझको बधाई
मैंने
दीपों की लौ में खोकर
कांपने हाथों में
चाय का प्याला लिया
और इसमें छब्बीस वर्षीय कडुवाहट मिलाकर
उसे घूंट-घूंट पी लिया
मेरे मित्रों एवं सम्बन्धियों ने
ताली बजाई
मेरे जन्मदिन पर।
जन्म दिन फिर आ रहा है / हरिवंशराय बच्चन
जन्म दिन फिर आ रहा है!
हूँ नहीं वह काल भूला,
जब खुशी के साथ फूला
सोचता था जन्मदिन उपहार नूतन ला रहा है!
जन्म दिन फिर आ रहा है!
वर्षदिन फिर शोक लाया,
सोच दृग में नीर छाया,
बढ़ रहा हूँ-भ्रम मुझे कटु काल खाता जा रहा है!
जन्म दिन फिर आ रहा है!
वर्षगाँठों पर मुदित मन,
मैं पुनः पर अन्य कारण-
दुखद जीवन का निकटतर अंत आता जा रहा है!
जन्म दिन फिर आ रहा है!
अपने जन्मदिन पर-3 / प्रेमचन्द गांधी
आखि़री नहीं है यह जन्म-दिन
और लड़ाई के लिए है पूरा मैदान
आज के दिन मैं लौटाना चाहता हूँ
एक उदास बच्चे की हँसी
आज के दिन मैं
घूमना चाहता हूँ पूरी पृथ्वी पर
एक निश्शंक मनुष्य की तरह
नियाग्रा फाल्स के कनाडाई छोर से
मैं आवाज़ देना चाहता हूँ अमरीका को कि
सृष्टि के इस अप्रतिम सौन्दर्य को निहारो
हथियारों की राजनीति से बेहतर है
यहाँ की लहरों में भीगना
आज के दिन मैं धरती को
बाँहों में भर लेना चाहता हूँ प्रेमिका की तरह
तुम्हारे जन्मदिन पर / प्रेमचन्द गांधी
फूलों की घाटी में
प्रकृति ने आज ही खिलाये होंगे
सबसे सुंदर-सुगंधित फूल
आसमान के आईने में
पृथ्वी ने देखा होगा
अपना अद्भुत रूप
पक्षियों ने गाये होंगे
सबसे मीठे गीत
तुम्हारी पहली किलकारी में
कोयल ने जोड़ी होगी अपनी तान
सृष्टि ने उंडेल दिया होगा
अपना सर्वोत्तम रूप
तुम्हारे भीतर
आज ही के दिन
कवियों ने लिखी होंगी
अपनी सर्वश्रेष्ठ कविताएँ
संगीतकारों ने रची होगी
अपनी सर्वोत्तम रचनाएँ
आज ही के दिन
शिव मुग्ध हुए होंगे
पार्वती के रूप पर
बुद्ध को मिला होगा ज्ञान
फिर से जी उठे होंगे ईसा मसीह
हज़रत मुहम्मद ने दिया होगा पहला उपदेश
जन्म-दिन के दिन / रवीन्द्र दास
मैं अपने जन्म-दिन के दिन सोचता हूँ
कि कोई अपने जन्म-दिन पर खुश कैसे हो पाता है ?
मैं अपने जन्म-दिन के दिन
खुश होने की कोशिश करना भूल जाता हूँ।
फिर भी मैं सोचता हूँ
कि किसी के जन्म-दिन, मसलन , गाँधी या ईसा के जन्मदिन पर
छुट्टी क्यों होती है?
किसकी और किससे होती है ?
और सोचता हूँ
कि जन्म लेना ख़ुशी की बात है या दुःख की बात !
हालाँकि यह सोचना अच्छानहीं लगता
फिर भी सोचता हूँ कि
जन्म लिया जाता है
या जन्म दिया जाता है ?
साथ में मैं यह भी सोचता हूँ
कि जन्म लेना ख़ुशी की बात है
या जन्म दिन मनाना ख़ुशी की बात ।
सच बताऊँ तो मैं सोचता नहीं
बस जानना चाहता हूँ
कि ख़ुशी का कोई कारण होता है
या यहाँ भी सिर्फ मनमानी है।
जन्म दिन पर / सुदर्शन वशिष्ठ
छोड़े गये उम्रों के कैदी
बाँटी गई खैरात गरीबों में
साहित्यकारों ने गाई प्रशस्तियां
शायरों ने पढ़े कसीदे
कलाकारों ने नाचे नाच
दरबारियों ने दी बधाइयां।
झुग्गी झोंपड़ियों के बच्चे
नहलाए गए डिटौल से
पहनाए गए उधार के कपड़े
हाथ में दिया गया एक-एक अधिखला फूल
कड़ी सुरक्षा के बीच उन्होंने दी बधाई
बच्चों ने देखा एक आदमी जैसा आदमी
जो पेंट नहीं पहनता था
फिर भी था शायद बहुत अमीर
रहता था महलों में
रक्षा करते थे उसकी कद्दावर सिपाही
छोटे बच्चों को और छोटे कर गया
झोंपड़ी में रहने का आहसास।
यह भी उन का जन्मदिन था
बच्चे उन्हें भी प्यारे थे
बच्चे उनके पास भी बुलाए गये
ये गरीब थे या अमीर पता नहीं
वे गरीब या अमीर होते भी नहीं
उन्हें अपने जन्म दिन पर न सही
बड़े लोगों के जन्मदिन पर खुश होना है।
अपने जन्म दिन पर बच्चों के सामने
उन्होंने उड़ाए शांति के कबूतर
जो आसमान में चले गये बहुत दूर
जब वापस आये तो
बम बन कर गिरे धरती पर
वे तो छिप गये खंदकों में अंगरक्षकों सहित
बच्चे धराशायी हो गए।
यह भी उनका जन्मदिन था
जहां महिलाएं भी आईं बच्चों के साथ
महिलाओं ने अपने अधिकारों की बात की
नारे लगाए
और घर जा कर अपने पति पतियाये
चूल्हे जलाए
यह भी उनका जन्मदिन था
वे फेंकते थे ब्रेड
जो बिखर जाती थी
टुकड़ टुकड़े होकर
फेंते जाते थे गले से उतार
पार्टी का पटका
जिनका नहीं बना पाता था अंगोछा
इससे तो पार्टी के बैनर ही अच्छे
इससे पाजामा तो सिल जाता था
उन्होंने बांटे मीठे शब्द
जब कि जनता को चाहिए था अंगोछा।
कहते प्रजातंत्रों में
बादशाह नहीं होता कोई
आदमी होते हैं हम आप की तरह सभी
किसान, मजदूर, मास्टर बगैरा
कोई भी बन सकता है प्रधानमंत्री
फिर क्यों मनाते हैं जन्मदिन
क्यों बांटते हैं खैरात
क्यों चाहते हैं कि बच्चे खुशी मनाएं
जब कि बच्चे नहीं जानते
आज उन का जन्म दिन है।
अमित के जन्म-दिन पर / हरिवंशराय बच्चन
अमित को बारंबार बधाई!
आज तुम्हारे जन्म-दिवस की,
मधुर घड़ी फिर आई।
अमित को बारंबार बधाई!
उषा नवल किरणों का तुमको
दे उपहार सलोना,
दिन का नया उजाला भर दे
घर का कोना-कोना,
रात निछावर करे पलक पर
सौ सपने सुखदायी।
अमित को बारंबार बधाई!
जीवन के इस नये बरस में
नित आनंद मनाओ,
सुखी रहो तन-मन से अपनी
कीर्ति-कला फैलाओ,
तुम्हें सहज ही में मिल जाएं
सब चीजें मन-भायी।
अमित को बारंबार बधाई!
जन्म दिन मुबारक हो माँ! / भावना कुँअर
जन्म दिन मुबारक हो माँ !
लो माँ… एक साल और बीत गया
ना हो पाया
इस साल भी
हमारा मिलन,
सोचा था…
इस जन्म दिन पर
मैं तुम्हारे साथ रहूँगी,
पर मेरी विवशता देखो,
नहीं आ पाई इस साल भी,
क्योंकि…
मैं निभा रही हूँ
उन कसमों को, उन वादों को
जो तुमने मुझे निभाने को कहा था…
परिवार के उन दायित्वों को
जो तुमने मुझे सिखाया था…
जब मैं विदा हो चली थी
उस घर से इस घर के लिये
पर माँ!
मैं माँ और पत्नी के साथ-साथ
इक बेटी भी हूँ ना…
मुझे भी तुम्हारी याद आती है
तुम्हारी वो सुकून भरी गोद
जब मैं टूटती या बिखरती हूँ
पर, फिर लग जाती हूँ
निभाने दायित्वों को
तुम्हारी ही दी हुई
शिक्षा को
तुम भी तो मुझे याद करती होगी माँ!
पर
तुम भी तो घिरी हो
दायित्वों के घेरे में,
पर, तुम कभी नहीं थकती।
लेकिन, मैं देख पाती हूँ
वो मायूसी
जो मेरे दूर रहने से छा जाती है
तुम्हारी आँखों में
पर, माँ ! तुम उदास मत होना
शायद अगले साल
तुम्हारे जन्मदिन पर मैं
तुम्हारे पास होऊँ
इसी इन्तजार में…
आज से ही गिनती हूँ दिन…
३६५ हाँ पूरे ३६५ दिन…
फिर मिलकर काटेगें केक
मैं खिलाऊँगी केक का टुकडा तुम्हें
जो अपनी देश की धरती से दूर रहकर
नहीं खिला पायी
और तुमने भी तो..
मेरे ही कारण
केक बनाना ही छोड़ दिया
और छोड़ दिया जन्म दिन मनाना भी
माँ ! अगले साल मनाएँगे जन्म दिन
सजायेंगे महफिल
और तुम
केक बनाकार रखना
और फिर
मेरा इन्तजार करना…
मेरा इन्तजार करना…
जन्मदिन मुबारक हो अमृता ….. / हरकीरत हकीर
रात ….
बहुत गहरी बीत चुकी है
मैं हाथों में कलम लिए
मग्मूम सी बैठी हूँ ….
जाने क्यूँ ….
हर साल …
यह तारीख़
यूँ ही …
सालती है मुझे…..
पर तू तो …
खुदा की इक इबारत थी
जिसे पढ़ना …
अपने आपको
एक सुकून देना है …
अँधेरे मन में …
बहुत कुछ तिड़कता है
मन की दीवारें
नाखून कुरेदती हैं तो…
बहुत सा गर्म लावा
रिसने लगता है …
सामने देखती हूँ
तेरे दर्द की …
बहुत सी कब्रें…
खुली पड़ी हैं…
मैं हाथ में शमा लिए
हर कब्र की …
परिक्रमा करने लगती हूँ ….
अचानक
सारा के खतों पर
निगाह पड़ती है….
वही सारा ….
जो कैद की कड़ियाँ खोलते-खोलते
कई बार मरी थी …..
जिसकी झाँझरें कई बार
तेरी गोद में टूटी थीं ……
और हर बार तू
उन्हें जोड़ने की…
नाकाम कोशिश करती…..
पर एक दिन
टूट कर…
बिखर गयी वो ….
मैं एक ख़त उठा लेती हूँ
और पढने लगती हूँ …….
“मेरे बदन पे कभी परिंदे नहीं चहचहाये
मेरी सांसों का सूरज डूब रहा है
मैं आँखों में चिन दी गई हूँ ….”
आह…..!!
कैसे जंजीरों ने चिरागों तले
मुजरा किया होगा भला ….??
एक ठहरी हुई
गर्द आलूदा साँस से तो
अच्छा था …..
वो टूट गयी …….
पर उसके टूटने से
किस्से यहीं
खत्म नहीं हो जाते अमृता …
जाने और कितनी सारायें हैं
जिनके खिलौने टूट कर
उनके ही पैरों में चुभते रहे हैं …
मन भारी सा हो गया है
मैं उठ कर खिड़की पर जा खड़ी हुई हूँ
कुछ फांसले पर कोई खड़ा है ….
शायद साहिर है .. …..
नहीं … नहीं …… .
यह तो इमरोज़ है …..
हाँ इमरोज़ ही तो है …..
कितने रंग लिए बैठा है . …
स्याह रात को …
मोहब्बत के रंग में रंगता
आज तेरे जन्मदिन पर
एक कतरन सुख की
तेरी झोली डाल रहा है …..
कुछ कतरने और भी हैं
जिन्हें सी कर तू
अपनी नज्मों में पिरो लेती है
अपने तमाम दर्द …. …
जब मरघट की राख़
प्रेम की गवाही मांगती है
तो तू…
रख देती है
अपने तमाम दर्द
उसके कंधे पर …
हमेशा-हमेशा के लिए ….
कई जन्मों के लिए …..
तभी तो इमरोज़ कहते हैं ….
तू मरी ही कहाँ है ….
तू तो जिंदा है …..
उसके सीने में….
उसकी यादों में …..
उसकी साँसों में …..
और अब तो ….
उसकी नज्मों में भी…
तू आने लगी है ….
उसने कहा है ….
अगले जन्म में
तू फ़िर आएगी ….
मोहब्बत का फूल लिए ….
जरुर आना अमृता
इमरोज़ जैसा दीवाना
कोई हुआ है भला ……!!
“जन्मदिन मुबारक हो अमृता”
राजीव के जन्मदिन पर / हरिवंशराय बच्चन
आज राजीव का जन्म-दिन आ गया,
सौ बधाई तुम्हें,
सौ बधाई तुम्हें।
आज आनन्द का घन गगन छा गया,
सौ बधाई तुम्हें,
सौ बधाई तुम्हें।
दे बधाई तुम्हें आज प्रातः किरण,
दे बधाई तुम्हें आज अम्बर-पवन,
दे बधाई तुम्हें भूमि होकर मगन।
फूल कलियां खिलें,
आज तुमको सभी की दुआएँ मिलें,
तुम लिखो, तुम पढ़ो,
खूब आगे बढ़ो,
खूब ऊपर चढ़ो,
बाप-मां खुश रहें,
काम ऐसा करो, लोग अच्छा कहें।
छोटे भाई के जन्मदिन पर / अनुपमा पाठक
चलो आज नहीं तो
कल ही सही…
तुम्हारी कविताओं से
मिलेंगे,
ढेर सारा स्नेह
और थोड़े से आँसुओं से
मन आँगन
सींचेंगे !
तब समय कहाँ था
उन पन्नों को
पलटने का,
वो दौर था
कितनी ही यादों को
समेटने का!
मेरी विदाई में
व्यस्त जो था सारा घर…
बीत गए तबसे
कितने ही पहर…
आज
इस दूर देश में बैठ
हर क्षण
विदाई के आंसू रोते हैं,
लेकिन फिर तुम्हारी बात
स्मरण हो आती है…
‘दूर हैं तो क्या-
भावरूप में हम संग ही होते हैं!’
ये बात
बार बार हमें
भँवर से तारती है,
मेरी राहों को
ज़रा और
सँवारती है!
कितने बड़े हो गए न
हम !
पर बीत कर भी न बीता
बचपन !
तुम्हारा बात-बात पर
आश्वस्त करना भाता है,
सच ! आज भी हमें
राहों में चलना नहीं आता है…
यूँ ही हमें
पग-पग पर
सँभालते रहना,
गायत्री-मन्त्र के उच्चारण-सा शुद्ध सात्विक
चन्दन की सुगंध लेकर
हो तेरा निरंतर बहना !!
राहों में फूलों का खिलना
यूँ ही बना रहे…
कष्ट-कंटक कुछ हो अगर
वो सब मेरे यहाँ रहे!
ये छोटी-सी मनोकामना है
और यही आशीष भी
जन्मदिन का उपहार
ये शब्दाशीश ही…
सस्मिता के जन्मदिन पर / हरिवंशराय बच्चन
आओ सब हिल-मिलकर गाएं,
एक खुशी का गीत।
आज किसी का जन्मदिवस है,
आज किसी मन में मधुरस है,
आज किसी के घर आँगन में,
गूँजा है संगीत। आओ०
आज किसी का रूप सजाओ,
आज किसी को खूब हँसाओ,
आज किसी को घेरे बैठे,
उसके सब हित-मीत। आओ०
आज उसे सौ बार बधाई,
आज उसे सौ भेंट सुहाई,
जिसने की जीवन के ऊपर
दस बरसों की जीत। आओ०
जन्म-दिन का गीत / शेरजंग गर्ग
जन्मदिन आपको मुबारक हो,
आपका नाम आसमाँ तक हो।
हर ख़ुशी आपके चरण चूमे
और आँगन में रोशनी झूमे,
काम भी यादगार लायक़ हो
जन्मदिन आपको मुबारक हो।
आपका नाम आसमाँ तक हो !
दर्द शरबत समझ के पी जाएँ
चाँद-तारों की उम्र जी जाएँ,
कोई बाधा कहीं न बाधक हो
जन्मदिन आपको मुबारक हो।
आपका नाम आसमाँ तक हो !
सबकी आँखों के आप हों तारे
आप हों प्यार से अधिक प्यारे,
हर जगह आप ही की रौनक़ हो
जन्मदिन आपको मुबारक हो।
आपका नाम आसमाँ तक हो !
जन्मदिन बधाई / संजय अलंग
बुलबुल आज चहक रही है
फिज़ा आज महक रही है
जन्मदिन है उसका आज
बज उठे हैं सभी साज
देते सभी शुभकामना औ’ बधाई
परियाँ खुशियाँ भर-भर लाईं
बुलबुल ने है मस्ती मनाई
बहुत-बहुत हो उसे बधाई
कल सवेरे मेरे जन्मदिन में / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
कल सवेरे मेरे जन्मदिन में
इस शैल अतिथिवास में
बुद्ध के नेपाली भक्त आये थे मेरा संवाद सुन।
भूमि पर बिछाकर आसन
बुद्ध का बन्दना मन्त्र सुनाया सबने मेरे कल्याण में
ग्रहण कर ली मैंने वह पुण्य वाणी।
इस धरा पर जन्म लेकर जिस महामानव ने
समस्त मानवों का जन्म सार्थक किया था एक दिन,
मनुष्य जन्म क्षण से ही
नारायणी धरणी
प्रतीक्षा करती आई थी युगों से,
जिनमें प्रत्यक्ष हुआ था धरा पर सृष्टि का अभिप्राय,
शुभ क्षण में पुण्य मन्त्र से
उनका स्मरण कर जाना यह मैंने
प्रवेश कर अस्सी वर्ष पहले मानव लोक में
उस महापुरूष का मैं भी हुआ पुण्यभागी।
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