बीरबल का पत्थर का घोड़ा – Akbar Birbal Story in Hindi

बीरबल और अकबर की कहानियाँ भारतीय लोक कथाओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। उनकी कहानियाँ सदियों से लोगों का मनोरंजन और शिक्षा करती आई हैं। ऐसी ही एक रोचक और मजेदार कहानी है “बीरबल का पत्थर का घोड़ा”। आइए, विस्तार से इस कहानी को जानते हैं।

कहानी की शुरुआत

एक समय की बात है, मुगल सम्राट अकबर अपने दरबार में अनेक रत्नों जैसे मंत्रियों और दरबारियों से घिरे रहते थे। उनमें से एक थे बीरबल, जो अपनी कुशाग्र बुद्धि और हाजिर जवाबी के लिए मशहूर थे। एक दिन अकबर अपने दरबार में बैठे थे और उन्हें कुछ नया और मनोरंजक चाहिए था। इसी आशा में उन्होंने बीरबल को अपने पास बुलाया।

बीरबल को चुनौती

अकबर ने मुस्कुराते हुए बीरबल से कहा, “बीरबल, मुझे अपने उदासीनता को दूर करने के लिए कुछ नया और मनोरंजक चाहिए। मुझे तुम्हारी बुद्धि पर पूरा विश्वास है, लेकिन इस बार मैं तुम्हें एक कठिन चुनौती देना चाहता हूँ।” बीरबल ने सम्मानपूर्वक पूछा, “कृपया, बताइए महाराज, मैं क्या कर सकता हूँ?”

अकबर की चुनौती

अकबर ने एक पल के लिए विचार किया और फिर बोले, “बीरबल, तुम्हें मुझे एक पत्थर का घोड़ा लाकर देना होगा, जिससे मैं सवारी कर सकूँ। तुम्हें ये काम एक महीने के अंदर पूरा करना होगा।” दरबार में सभी दरबारी हँसने लगे, क्योंकि पत्थर का घोड़ा और वह भी सवारी करने योग्य, ये असंभव था।

बीरबल की योजना

बीरबल ने चुनौती को स्वीकार किया और सिर झुकाकर दरबार से बाहर निकल गए। उन्होंने सूक्ष्मता से सोचकर एक योजना बनाई। बीरबल ने पत्थर के एक बहुत बड़े टुकड़े को तराशने वाले कारीगरों को बुलाया और उनसे कहा, “तुम्हें इस बड़े पत्थर को तराशकर एक घोड़े का आकार देना है, और उसे बहुत सुंदर बनाना है।” कारीगरों ने उत्साहपूर्वक बीरबल के आदेश का पालन किया।

समय सीमा के अंतिम दिन

एक महीने के भीतर कारीगरों ने एक सुंदर पत्थर का घोड़ा बना दिया। बीरबल ने उसे महाराज अकबर के सामने प्रस्तुत किया और कहा, “महाराज, यह रहा आपका पत्थर का घोड़ा। यह घोड़ा न सिर्फ देखने में उत्कृष्ट है, बल्कि यह आपकी चुनौती को भी पूरा करता है।” अकबर घोड़े को देखकर बहुत खुश हुए, परंतु वे सवारी करने की बात पर उलझन में थे।

बीरबल का जवाब

अकबर ने बीरबल से पूछा, “बीरबल, ये तो बेहद सुंदर है, लेकिन मैं इस पर सवारी कैसे कर सकता हूँ?” बीरबल ने मुस्कुराते हुए कहा, “महाराज, यह घोड़ा इतना विशिष्ट है कि इसे सवारी करने के लिए आपको धरती में हलका और आकाश में भरपूर होना होगा। जैसे ही आप यह अवस्था प्राप्त करेंगे, यह घोड़ा स्वयं ही चलने लगेगा।” अकबर ने बीरबल की बुद्धिमानी को सराहा और हँसते हुए कहा, “बीरबल, तुमने मुझे खुशी और मनोरंजन दोनों ही दिए।”

कहानी का अंत

इस प्रकार, बीरबल ने अपनी चतुराई से न केवल अकबर की चुनौती को पूरा किया, बल्कि सभी दरबारियों को अपनी बुद्धि का कायल बना दिया। इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि समस्या चाहे कितनी भी कठिन क्यों न हो, उसे बुद्धिमानी और संयम से हल किया जा सकता है।

बीरबल की कहानियाँ हमें हमेशा यही सिखाती हैं कि हमें किसी भी चुनौती को अपनी कुशाग्र बुद्धि और समझदारी से हल करना चाहिए।

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