एक बार की बात है, बादशाह अकबर अपने दरबार में बैठे हुए थे और राजदरबार में कोई विशेष मामला नहीं चल रहा था। सभी दरबारी आपस में कुछ बातचीत कर रहे थे। इसी बीच एक व्यापारी दौड़ता हुआ दरबार में आ गया और बादशाह के सामने हाथ जोड़कर खड़ा हो गया।
व्यापारी ने रोते हुए कहा, “जहांपना! मुझे न्याय चाहिए। मेरी मेहनत की गाढ़ी कमाई एक ठग ने मुझसे धोखे से छीन ली है।” बादशाह अकबर ने व्यापारी को शांत कराने और पूरा मामला सुनने के लिए कहा।
व्यापारी ने बताया, “कुछ दिन पहले मेरे पास एक व्यक्ति आया और बोला कि वह मेरे लिए एक कीमती हीरा बेच सकता है। हमने सौदा किया और मैंने उसे मोटी रकम दे दी। लेकिन जब मैंने हीरे को परखा तो वह नकली निकला। जब मैं उसे पकड़ने गया तो वह व्यक्ति फरार हो गया। मैं पूरी तरह से लुट गया हूं, महाराज।”
बादशाह अकबर ने व्यापारी की दिक्कत सुनकर तुरन्त अपने प्रमुख न्यायाधीश, बीरबल, को दरबार में बुलाया और उनसे इस मामले का हल निकालने के लिए कहा। बीरबल ने अपनी तेज बुद्धि और चतुराई से मामले का पूरा विवरण सुना और मुस्कुराते हुए कहा, “महाशय, आप बिल्कुल निश्चिंत रहिए। हम इस मामला का निपटारा जल्द से जल्द करेंगे।”
बीरबल की चतुराई
बीरबल दरबार में बैठे हुए ठग को पकड़ने के लिए एक योजना बनाने लगे। उन्होंने सोचा कि ठग को पकड़ने के लिए उसे आकर्षित करना होगा। उन्होंने उस व्यक्ति का वेश बदल कर व्यापारी के ही स्वरूप में भेष बदल लिया और बाज़ार में जाकर घूमना शुरू कर दिया।
कुछ दिन बाद, बीरबल ने वह नकली हीरा अपने पास रखा और बाज़ार में फिर से वही आवाज़ लगाई जैसे कि वह हीरा बेचने आए हो। ऐसा करते हुए वह ठग भी बाजार में आया और फिर से अपने ही चाल में फसने की तैयारी करने लगा। उसने बीरबल को हीरा बेचने की कोशिश की। बीरबल ने उसे अपने जाल में ऐसे फंसा लिया कि ठग को कोई सुराग नहीं मिला और उसे गिरफ्तार कर लिया गया।
दरबार में न्याय
दरबार में उस ठग को लाया गया और व्यापारी ने उसे पहचान लिया। बादशाह अकबर ने ठग को कड़े शब्दों में फटकार लगाई और उसे न्याय दिलाने का आदेश दिया। बीरबल ने कहा, “जहांपना, इस ठग ने बहुत सारे लोगों को धोखा दिया है। इसे कड़ी सजा मिलनी चाहिए।”
बादशाह अकबर ने ठग को जेल में डालने और उसकी पूरी संपत्ति को व्यापारी को लौटाने का आदेश दिया। इस प्रकार बीरबल ने फिर से अपनी चतुराई और न्यायप्रियता से एक निर्दोष व्यक्ति को न्याय दिलाया और ठग को उसकी करनी का फल भुगतना पड़ा।
इस घटना के बाद, व्यापारी और अन्य दरबारी बीरबल की बुद्धिमानी और न्याय करने की क्षमता की बहुत प्रशंसा करने लगे।
इस प्रकार बीरबल ने एक बार फिर से अपने नाम को सत्यान्वित करते हुए न्याय की मिसाल पेश की।