Bewafa Poetry in Hindi अर्थात इस article में आप पढेंगे, हिन्दी में बेवफा कविताएँ. हमने आपके लिए अलग-अलग बेवफा कविताओं को चुन कर उनका संकलन किया है.
List of Bewafa Poetry in Hindi – हिन्दी में बेवफा कविताएँ की लिस्ट
Contents
- 1 List of Bewafa Poetry in Hindi – हिन्दी में बेवफा कविताएँ की लिस्ट
- 1.1 कहा जाता है उसे बेवफा , समझा नहीं जाता / वसीम बरेलवी
- 1.2 वो दिल का बुरा, न बेवफा था / मोहसिन नक़वी
- 1.3 बेवफा / दीपक मशाल
- 1.4 या इलाही तू बचाना बेवफा के हाथ से / महेन्द्र मिश्र
- 1.5 बेवफाई जो तुमने की तो कोई बात नहीं / आशीष जोग
- 1.6 प्यास और पानी / केदारनाथ अग्रवाल
- 1.7 मुदद्त हुई सजन ने किताब नईं लिखी / वली दक्कनी
- 1.8 सपने / दीप्ति गुप्ता
- 1.9 इस से पहले कि बेवफ़ा हो जाएँ / फ़राज़
- 1.10 Related Posts:
बेवफा बावफा हुआ कैसे / कविता किरण
बेवफा बावफा हुआ कैसे
ये करिश्मा हुआ भला कैसे।
वो जो खुद का सगा न हो पाया
हो गया है मेरा सगा कैसे।
जब नज़रिए में नुक्स हो साहिब
तो नज़र आएगा ख़ुदा कैसे।
सो गया हो ज़मीर ही जिसका
वो किसी का करे भला कैसे।
तूने बख्शा नहीं किसी को जब
माफ़ होगी तेरी ख़ता कैसे।
जब कफस में नहीं था दरवाज़ा
फिर परिंदा हुआ रिहा कैसे।
कितने हैरान हैं महल वाले
कोई मुफ़लिस यहाँ हंसा कैसे।
चाँद मेहमान है अंधेरों का
चुप रहेगी ‘किरण’ बता कैसे।
कहा जाता है उसे बेवफा , समझा नहीं जाता / वसीम बरेलवी
मोहब्बत में बुरी नियत से कुछ सोचा नहीं जाता कहा जाता है उसको बेवफा समझा नहीं जाता
झुकाता है यह सर जिसकी इबादत के लिए उस तक तेरा जज्बा तो जाता है तेरा सजदा नहीं जाता
तुम्हारे साथ में कोई नयापन है तो बस यह है बहुत तकलीफ देता है मगर छोड़ा नहीं जाता
वो दिल का बुरा, न बेवफा था / मोहसिन नक़वी
वो दिल का बुरा, न बेवफा था
बस, मुझ से यूंही बिछड़ गया था
लफ़्ज़ों की हदों से मावरा था
अब किस से कहूँ वोह शख्स कहाँ था ?
वोह मेरी ग़ज़ल का आइना था
हर शख्स यह बात जानता था
हर सिमत उसी का तज़करा था
हर दिल में वोह जैसे बस रहा था
मैं उस की अना का आसरा था
वोह मुझ से कभी न रूठता था
मैं धुप के बन में जल रहा था
वोह साया-अब्र बन गया था
मैं बाँझ रुतों का आशना था
वोह मोसम-ए-गुल का ज़ाइका था
एक बार बिछड़ के जब मिला था
वोह मुझ से लिपट के रो पड़ा था
क्या कुछ न उस से कहा गया था?
उस ने तो लबों को सी लिया था
वोह चाँद का हमसफ़र था शायद
रातों को तमाम जगता था
होंटों में गुलों की नरम खुशबू
बातों में तो शहद घुलता था
कहने को जुदा था मुझ से लेकिन
वोह मेरी रगों में गूंजता था
उस ने जो कहा, किया वोह दिल ने
इंकार का किस में हौसला था
यूँ दिल में थी याद उसकी जैसे
मस्जिद में चराग जल रहा था
मत पूछ हिजाब के करीने
वोह मुझ से भी कम ही खुल सका था
उस दिन मेरा दिल भी था परेशां
वोह भी मेरे दिल से कुछ खफा था
मैं भी था डरा हुवा सा लेकिन
रंग उस का भी कुछ उड़ा उड़ा था
एक खौफ़ सा हिज्र की रुतों का
दोनों पे मोहित हो चला था
एक राह से मैं भी था गुरेज़ाँ
एक मोड़ पे वोह भी रुक गया था
एक पल में झपक गईं जो आँखें
मंज़र ही नज़र में दूसरा था
सोचा तो ठहर गए ज़माने
देखा तो वोह दूर जा चुका था
कदमों से ज़मीन सिरक गयी थी
सूरज का भी रंग सांवला था
चलते हुवे लोग रुक गए थे
ठहरा हुवा शहर घूमता था
सहमे हुवे पेड कांपते थे
पत्तों में हीरस रेंगता था
रखता था मैं जिसमें खवाब अपने
वोह कांच का घर चटख गया था
हम दोनों का दुःख था एक जैसा
एहसास मगर जुदा जुदा था
कल शब वोह मिला था दोस्तों को
कहते हैं उदास लग रहा था
मोहसिन यह ग़ज़ल ही कह रही है
शायद तेरा दिल दुःख हुआ था
बेवफा / दीपक मशाल
दिन बा दिन सूखते जा रहे एक पेड़ की शाख
अचानक कुछ निश्चय कर चटकी
तेज़ आँधी की आड़ ले टूटी
और टूटकर जा गिरी ज़मीं पर
तेज़ बारिश में गलाया, सड़ाया खुद को…
मिट्टी संग मिल खाद हुई..
खाद सोख पेड़ में हरक़त हुई
कुछ जान आई
पत्तियाँ हरयाईं
नई शाख लहराईं…
अब बद-वक्त में टूट गिरी वो शाख बेवफा कहलाती है…
या इलाही तू बचाना बेवफा के हाथ से / महेन्द्र मिश्र
या इलाही तू बचाना बेवफा के हाथ से।
दिल्लगी चूल्हे में जाये बाज आये साथ से।
धमकियाँ और गालियाँ अभी दूर हो जा पास से।
हर घड़ी हम दम का झगड़ा नाको दम है बात से।
दिन-ब-दिन बढ़ती सरारत है लड़कपन घात से।
बातों बातों में बिगड़ जाता सरे औकात से।
आरजू सुनता नहीं बकता है टेढ़ी बात से।
ऐ खुदा मुझको छुड़ा देा इस बला के साथ से।
खंजर जो खूनी लिए हैं लड़ गई वो आँख से।
कितने घायल हो गये इस आशिकी के हाथ से।
क्या करूँ अब तो महेन्दर फँस गये हम नाज से।
पड़ गई दिल में गिरह तो कौन खोले हाथ से।
बेवफाई जो तुमने की तो कोई बात नहीं / आशीष जोग
बेवफाई जो तुमने की तो कोई बात नहीं,
इसमें नज़रें चुराने की तो कोई बात नहीं |
दिल ही टूटा है अभी मैं तो नहीं टूटा हूँ,
इतना मातम मनाने की तो कोई बात नहीं |
बात ये तेरे मेरे बीच में ही रहने दो,
ग़ैर को ये बताने की तो कोई बात नहीं |
कितनी कोशिश करो दिल की ख़लिश नहीं जाती,
इतना भी मुस्कुराने की तो कोई बात नहीं |
हमने माना कि अभी वक़्त बुरा है अपना,
फिर भी मायूस होने की तो कोई बात नहीं |
दिल से बेबस हूँ दिल ये बस में नहीं है मेरे,
मुझ पे तोहमत लगाने की तो कोई बात नहीं |
तेरी इस बेरुख़ी से हो गयी है यारी अब,
इसमें हैरत जताने की तो कोई बात नहीं |
प्यास और पानी / केदारनाथ अग्रवाल
एक
अब आओ न पत्थर को निचोड़कर निकाल लें पानी
न अब मिलता है जल
न अब बुझती है प्यास
बस मौन ही खड़ा है घर में नल
दमयंती के विरह में उदास
हाय रे यह हमारा अभाग्य
हाय रे यह हमारी बहरी गूँगी बेदरद मानुसपलती।
दो
आओ न अब हम तुम कपार पर अपने दे मारें
खरीदकर पाँच आने का पानी भरा नारियल
न अब मिलता है जल
बस मौन खड़ी है छुटा गई गाय की तरह बड़ी भारी खाली टंकी
हाय रे यह हमारा अभाग्य
हाय रे यह हमारी बेवफा मानुसपलटी की बेवफा बेटी टंकी।
तीन
अब आओ न अपने सिर पर बिठाल लें
जटाजूटधारी शंकर की गंगधारधारी प्रस्तर मूर्ति
जिससे मिलता रहे हमको
जेठ में त्रयतापहारी गंगोदक
और हम होते तृप्त-कछार की तरह हरे
न अब मिलता है जल
न अब बुझती है प्यास
बस मौन खड़ा है घूप से भरा भारी गरमागरम दिन
स्वयं जलता और सबको जलाता उदास दिन
हाय रे हमारा अभाग्य
हाय रे यह हमारी बेवफा मानुसपलटी का जानलेवा दिन
चार
आओ न अब
कंठ से अपने आतप्त झुलसे रेगिस्तान पर
कहीं से भगा लाई किसी क्षीण कटि नाजुक नदी के साथ चलें
और उसका अनमोल गले का मोतियों का हार तोड़ डालें
और इस तरह पाएँ आब-भरपूर आब।
क्योंकि अब मिलता नहीं हमें पानी
क्योंकि अब बुझती नहीं प्यास हमारी
हाय रे हमसे रूठी मानुसपलटी
-प्यार न करती बहरी निठुर मानुसपलटी।
मुदद्त हुई सजन ने किताब नईं लिखी / वली दक्कनी
मुदद्त हुई सजन ने किताबत नईं लिखी
आने की अपने रम्ज़-ओ-किनायत नईं लिखी
मैं अपने दिल की तुझकूँ हिकायत नईं लिखी
तेरी मफ़ार्क़त की शिकायत नईं लिखी
करता हूँ अपने दिल की नमन चाक-चाक उसे
जो आह के क़लम सूँ किताबत नईं लिखी
तस्वीर तेरे क़द की मुसव्विर न लिख सके
हरगिज़ किसी ने नाज़ की सूरत नईं लिखी
मारा है इंतिज़ार ने मुझकूँ वले हनोज़
उस बेवफा कूँ दिल की हक़ीक़त नईं लिखी
क्यूँ संग-ए-दिल तमाम मुसख़्ख़िर हुए अगर
ताल्अ में मेरे कश्फ़-ओ-करामत नईं लिखी
डरता है सादगी सिती मोहन की ऐ ‘वली’
इस ख़ौफ़ सूँ रक़ीब की अत-पत नईं लिखी
सपने / दीप्ति गुप्ता
अजनबी चेहरों में, अपनों को ढूँढ़ते हो
सहरा में क्यों गुलिस्तां खोजते हो!
बंजर जमीन में, फूलों को रोपते हो
प्यार बेवफा से, वफा की सोचते हो!
आँखों में कोहरा, क्यूँ सितारों को खोजते हो
दोस्ती बदकिस्मती से, किस्मत को कोसते हो!
खिजाओं को न्योत के, बहारों की सोचते हो
संगदिल जमाने के संग खुशियों की सोचते हो!
इस से पहले कि बेवफ़ा हो जाएँ / फ़राज़
इस से पहले कि बेवफ़ा हो जाएँ
क्यूँ न ए दोस्त हम जुदा हो जाएँ
तू भी हीरे से बन गया पत्थर
हम भी कल जाने क्या से क्या हो जाएँ
हम भी मजबूरियों का उज़्र करें
फिर कहीं और मुब्तिला हो जाएँ
अब के गर तू मिले तो हम तुझसे
ऐसे लिपटें तेरी क़बा हो जाएँ
बंदगी हमने छोड़ दी फ़राज़
क्या करें लोग जब ख़ुदा हो जाएँ
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