अरविंद घोष बंगाल के एक प्रसिद्ध लेखक थे, जो अपने काल्पनिक उपन्यासों और कहानियों के लिए जाने जाते थे, जिनमें आम लोगों के जीवन और संघर्षों को दर्शाया गया था। वह उन अग्रदूतों में से एक थे जिन्होंने एक सामान्य व्यक्ति के दृष्टिकोण से लिखकर बंगाली साहित्य में बदलाव लाया।
घोष का लेखन अद्वितीय था क्योंकि उन्होंने सामान्य पुरुषों और महिलाओं पर ध्यान केंद्रित किया था जिनके पास दुखों, आशाओं और खुशियों का अपना हिस्सा था। उनकी कहानियों में इन पात्रों को इतनी सरलता से चित्रित किया गया कि पाठक आसानी से उनसे जुड़ सके। उन्हें कारीगरों, मजदूरों और अन्य श्रमिक वर्ग के व्यक्तियों के जीवन में विशेष रुचि थी।
अरविंद घोष के उपन्यास अक्सर गरीबी, असमानता और शोषण जैसे सामाजिक मुद्दों से जुड़े होते हैं। अपने लेखों के माध्यम से उन्होंने इन समस्याओं की ओर ध्यान दिलाया और दुनिया को दिखाया कि पीड़ित लोगों की मदद करना कितना महत्वपूर्ण है। उनकी कहानियाँ न केवल मनोरंजक थीं बल्कि शिक्षाप्रद और विचारोत्तेजक भी थीं।
घोष की भाषा की सरलता उनकी लेखन शैली का एक और महत्वपूर्ण पहलू थी। उन्होंने बांग्ला का प्रयोग इस प्रकार किया कि उनके पाठक उनकी कहानियाँ पढ़ते समय सहज महसूस करें। इससे उन्हें जनता से जुड़ने और बंगाल में सबसे प्रिय लेखकों में से एक बनने में मदद मिली। अरविंद घोष ने बंगाली साहित्य पर एक अमिट छाप छोड़ी और उनकी रचनाएँ पाठकों की पीढ़ियों को प्रेरित करती रहती हैं। उनकी विरासत परिवर्तन लाने के लिए लेखन की शक्ति की याद दिलाती है।