Anger Management in Hindi अर्थात इस आर्टिकल में हम जानेंगे कि क्रोध पर काबू कैसे करें? क्रोध एक ऐसी चीज़ है जो अच्छे-अच्छे कार्यो को क्षण में बिगाड़ देती है, इसका समाधान ज़रूरी है.
क्रोध पर काबू (Anger Management)
प्रत्येक व्यक्ति यह चाहता है कि वह सुख से रहे, चैन से रहे । इसके लिए वह यत्न भी बहुत करता है । यह बिल्कुल इस तरह से हो रहा है कि जैसे एक व्यक्ति अपनी बीमारी की दवा लेने डाक्टर के पास जाता है । डाक्टर उसे दवा के साथ कुछ परहेज भी बताता है । यदि वह व्यक्ति दवा के साथ परहेज भी अपना लेता है तो वह शीघ्र ही स्वस्थ हो जाता है । परन्तु यदि परहेज नहीं अपनाता तो दवा अपना काम नहीं कर सकेगी । इसी प्रकार सुख-शान्ति तो सभी चाहते है परन्तु उसे पाने के लिए जो त्याग करना पड़ता है वह नहीं कर पाते जबकि वही सबसे आवश्यक है ।
क्रोध घर में कभी सुख-शान्ति नहीं आने देता । क्रोध से दूसरों को तो कष्ट पहुँचता ही है, हमें भी अन्दर से खोखला कर देता है । क्रोध में मानव कई बार ऐसा अनर्थ कर देता है जिससे उसे जीवन-पर्यन्त पछताना पड़ता है ।
तारीख की नजरों ने वो दौर भी देखे है,
लम्हों ने ख्ठा की और सदियों ने सज़ा पाई है ।
क्यों न इस क्रोध रूपी हानि अथवा कष्ट से बचने का प्रयास किया जाए जिसके रहते अशान्ति और तनाव बढ़ता है और कभी शान्ति प्राप्त नहीं हो सकती । जब भी क्रोध आता है वह किसी न किसी पर तो उतरता ही है । इस से हमारा, हमारे अपनों का मन दुःखी तो होता ही है साथ में घर का वातावरण भी खराब हो जाता है । यदि उस क्षाग स्वयं को सम्भाल लें और सही समय पर उस मुद्दे को उठायें तो बात का वजन बढ़ जाएगा और घर में मायूसी की जगह हँसी का आगमन होगा । वह हँसी जो क्रोध की अग्नि में जलने से बच गई । और अपनों पर कैसा गुस्सा, अपने तो अपने है, जो हमें दिल से चाहते है । यह सोचकर उन्हें क्षमा कर देना -चाहिए ।
हम सब कुछ सहन कर सकते है परन्तु अपनों की दी हुई पीड़ा नहीं । जैसे कि एक बार सोने के एक टुकड़े ने लोहे के टुकड़े से पूछा, हथौड़ा तुम्हें भी पीटता है और मुझे भी, मै तुमसे कही ज्यादा नाजुक हूँ परन्तु फिर भी जब तुम पर चोट पड़ती है तो तुम इतना क्यों चिल्लाते हो । मै तो ऐसा नहीं करता । तब लोहे ने कहा तुम नहीं समझ पाओगे । जो अपनों की दी हुई चोट होती है, वह असह्य होती है । यह सुनकर सोने का टुकड़ा चुप हो गया । इसलिए जरा सम्भाल कर चलें, कहीं जाने- अनजाने में ही हम अपनी को ही चोट, कष्ट अथवा दर्द तो नहीं दे रहे! यदि हाँ, और यह सब क्रोध के कारण हो रहा है तो हम किसे छोड़ना पसन्द करेंगे, अपने क्रोध को या फिर अपनों को? यदि आप सचमुच क्रोध को स्वयं से दूर रखना चाहते है तो इसके लिए प्रयत्न भी स्वयं ही करने पड़ेंगे । क्रोध पर नियन्त्रण पाना कठिन है परन्तु असम्भव नहीं ।
यदि हमने अपना शेष जीवन सुख-शान्ति से व्यतीत करना है तो एकान्त में बैठ कर सोचें कि अपने क्रोध पर कैसे नियन्त्रण पाया जाए, कौनसे तरीके अपनाएँ । क्योंकि अपने आप को अपने आप से अधिक कौन जानता है? आपके सोचने पर इसका उपाय अवश्य मिल जाएगा । इसी प्रकार हमें अपनी त्रुटियों तथा कमजोरियों का भी पता चल सकता है । प्रायः हमें क्रोध किसी की भूल के कारण आता है । अब जरा सोचिए भूल कहते किसको है? जो भूल जान बूझ कर न की गई हो, भला किसी को उसके लिए दण्ड क्या दिया जाए हम उस पर क्रोध क्यों करें जो हुआ ही गलती से हो । ऐसे में क्षमा कर देना ही बेहतर होता है । इससे एक तो हमारे मन को शान्ति मिलेगी दूसरी ओर भूल करने वाले को अपनी भूल पर ग्लानि होगी । प्रत्येक इन्सान से भूलें तो होती ही रहती है ।
यदि इन्सान भूलों के भय से कुछ करना ही बन्द कर दे तो जीवन में कभी सफल नहीं हो सकता । यदि इन्सान मूल करना बन्द कर दे फिर तो देवता बन जाए । गुण- अवगुण तो हर व्यक्ति में होते है । यदि हम अवगुणों को न देखते हुए गुणों को ही देखें तो छोटी-छोटी भूलें तो हम यूँ ही क्षमा कर देंगे और क्षमा करने से सजा देने की बजाय अधिक असर होता है । माना यह बहुत कठिन है परन्तु क्षमा करने वाले का दर्जा सदैव ऊँचा ही रहा है । संसार में ऐसा कोई व्यक्ति नहीं जिसने कभी कोई मूल न की हो क्योंकि इन्सान गलतियों का पुतला है और हम भी इन्सान है कोई देवता नहीं । हो सकता है कि जिस भूल की सजा हम आज किसी को दे रहे है वही भूल कल हम से भी हो जाए । इसलिए क्षमा से बढ्कर अन्य कुछ नहीं ।
छोटी-छोटी बातों पर क्रोध कर हम अपने बहुत?-? ‘दाग नष्ट न करें । समय और स्थिति को समझते हुए स्वयं पर नियन्त्रण करना सीखें । अभी क्रोध करने की आदत मनी हुई है, कल इसे छोड़ने की आदत भी बनते – बनते बन जाएगी । कुछ ध्यान योग्य बातें है:-
- यदि क्रोध आए तो उस स्थान को छोड्कर कही और चले जाएं ।
- क्रोध आने पर दर्पण के सामने चले जाएँ ।
- यदि कोई क्रो हा से देखे तो मुस्कुरा दें ।
यदि आप ऐसा कर पाते है तो आप सब कुछ पा लेते है । यदि नहीं कर पाते तो किसी का क्या जाता है, स्वयं को हानि पहुँचा रहे होते है । को ध के कारण पता नहीं कितने घर, कितने परिवार नष्ट हो चुके है क्योंकि क्रोध के समय बुद्धि का विनाश हो जाता है । पता नहीं इन्स । न क्या कर दे । इसने पता नहीं कितने घर जला दिए, कितनी खुशियाँ जला दी, अब तो हम इसे छोड़ ही दें । ऐसा कुछ न करें जिससे किसी का क्रो ध बड़े, हम किसी की कमजोरी का नाजायज ला म न उठाएँ । जो भून एक बार हो चुकी हो उसे न दोहराएं । वातावरण को शान्त बनाने में सहयोग दें । इन्सान है, तो इन्सान ही बने रहें, हैवान न बने, क्रो ध इन्सान को हैवान बना देता है ।
किसी के काम जो आए उसे इन्सान कहते है,
पराया दर्द अपनाएं, उसे इंसान कहते हैं ।
कार गलती का झला है यह अक्सर हो ही जाता है
गलती करके जो पछताए, उसे इन्सान कहते हैं।
वैसे भी जहाँ क्रोध होता है वहाँ कभी सुख नहीं होता। जितना हो सके इससे बचें।
जहिं दया वहिं धर्म है जहिं लोभ वाह पाप।
जहिं क्रोध तहिं काल तजहिं क्षमा तहिं आप?
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