बीरबल की हाजिरजवाबी के किस्से आज भी सुनाई देते हैं। इस कहानी में हम एक ऐसे ही रोचक घटना के बारे में जानेंगे जिसमें बीरबल ने अपनी सूझ-बूझ और त्वरित उत्तर से एक कठिन समस्या का हल निकाला।
बकरी और बाघ का विवाद
किसी वक्त की बात है, जब अकबर बादशाह दिल्ली के सिंहासन पर विराजमान थे। उनके दरबार में बीरबल हमेशा अपनी बुद्धिमानी से सभी को अचंभित कर देते थे। एक दिन ऐसा हुआ कि गांव के दो आदमी एक बकरी और बाघ के साथ दरबार में आए। दोनों के बीच किसी प्रकार का विवाद चल रहा था।
पहला व्यक्ति बोला, “जहांपनाह, यह बकरी मेरी है। मैंने इसे पाल-पोसकर बड़ा किया है।”
दूसरा व्यक्ति बोला, “नहीं हुजूर, यह बकरी मेरी है। इसे मैंने हरे-भरे खेतों में चराया है।”
अकबर ने सोचा कि इस मामले को सुलझाने के लिए बीरबल से बेहतर कोई नहीं हो सकता। उन्होंने बीरबल को बुलाया और दोनों व्यक्तियों की दलीलें सुनी।
समाधान की खोज
बीरबल ने कुछ पल के लिए विचार किया और तुरंत एक योजना बनाई। उन्होंने अकबर से कहा, “जहांपनाह, हमें इस बकरी और बाघ को दो अलग-अलग कमरों में रखना होगा। केवल तब ही हम समझ पाएंगे कि यह बकरी किसकी है।”
अकबर ने सहर्ष बीरबल की योजना को मान लिया और बकरी तथा बाघ को दो अलग-अलग कमरे में बंद करवा दिया।
हाजिरजवाबी का कमाल
अगले दिन बीरबल ने दरबार में दोनों व्यक्तियों को बुलाया और कहा, “आज हम इस बकरी का फैसला करेंगे। बकरी को पहचानने का तरीका बहुत सरल है। जो व्यक्ति इस बकरी का मालिक होगा, वह बाघ के औचित्य से कहेगा कि बकरी उसकी है।”
पहला व्यक्ति घबराते हुए बोला, “हुजूर, मैंने ही इस बकरी को पाला है।”
दूसरा व्यक्ति थोड़ी हिम्मत जमाकर बोला, “नहीं हजूर, यह बकरी मेरी है।”
असली मालिक की पहचान
इसके बाद बीरबल ने बाघ को बुलवाया। बाघ को देखकर पहला व्यक्ति भयभीत हो गया और दरबार से बाहर भागने की कोशिश की। वहीं दूसरा व्यक्ति स्थित रहा और धीमे स्वर में कहने लगा, “हुजूर, मेरी बकरी को बचा लीजिए।”
इस पर बीरबल मुस्कराए और बोले, “जहांपनाह, यही है असली मालिक। जो व्यक्ति अपनी बकरी के लिए बाघ से भिड़ने का साहस करता है, वही सही मायनों में इसका मालिक है।”
निष्कर्ष
बीरबल की हाजिरजवाबी ने एक बार फिर से दरबार को अचंभित कर दिया। अकबर ने बीरबल की प्रशंसा की और गांववालों को सही न्याय मिल गया। इस घटना से यह साबित हो गया कि सूझ-बूझ और समझदारी से हर समस्या का हल निकाला जा सकता है। बीरबल की यही विशेषता उसे पूरे दरबार में विशिष्ट बनाती थी।