अकबर और बीरबल की कहानियाँ भारतीय इतिहास में शिक्षा और मनोरंजन का मुख्य स्रोत रही हैं। ऐसी ही एक रोचक और शिक्षाप्रद कहानी है “पेड़ पर लटके आदमी का फैसला”। यह कहानी बताती है कि कैसे बीरबल की बुद्धिमत्ता और न्यायप्रियता से एक कठिन परिस्थिति का समाधान निकला।
एक बार की बात है, अकबर बादशाह अपने दरबार में बैठे थे और जन समस्याओं का समाधान कर रहे थे। उसी समय एक व्यक्ति दरबार में आया और बोला, “महाराज! मेरी समस्या का समाधान केवल आप ही कर सकते हैं।”
अकबर बोले, “क्या समस्या हैं? विस्तार से बताओ।”
वह व्यक्ति कहने लगा, “महाराज! मैं एक व्यापार के सिलसिले में दूसरे शहर गया था। लौटते समय, मैंने एक किसान का खेत पार किया। अचानक मेरी दृष्टि एक पेड़ पर लटके आदमी पर पड़ी। वह आदमी मर चुका था। पास ही एक गाँव था, और मैंने उसी गाँव के प्रमुख को यह बताने का निर्णय लिया।”
“गाँव के लोग वहाँ आए और उन्होंने उस आदमी को पहचान लिया। वह आदमी उसी गाँव का निवासी था। अब गाँव वालों का कहना है कि मैं उस आदमी की हत्या का दोषी हूँ, क्योंकि मैंने उसे सबसे पहले देखा था। मेरी कोई गलती नहीं है, महाराज! कृपया मुझे न्याय दिलाईये।”
अकबर ने सुना और विचारमग्न हो गए। इसके बाद उन्होंने अपने प्रमुख मंत्री बीरबल को बुलाया और सारी घटना वर्णन की।
बीरबल ने पूरी कहानी सुनी और कुछ देर सोचा, फिर बोले, “महाराज! इस समस्या का समाधान हो सकता है। कृपया मुझे उस स्थल पर जाने की अनुमति दें, जहां पर वह आदमी लटका हुआ था।”
अकबर ने अनुमती दी और बीरबल उस व्यक्ति के साथ घटना स्थल पर गए। वहाँ पहुँच कर बीरबल ने पूरे स्थल का मुआयना किया और गाँव वालों से बातचीत की।
बीरबल ने देखा कि पेड़ की स्थिति और चारों ओर के निरीक्षण में कुछ अजीब बातें निकलीं। वह आदमी पेड़ की एक बहुत ऊंची शाखा से लटका हुआ था। पास ही उसने एक पत्थर की चट्टान भी देखी, जिससे समझ में आता था कि वो उस चट्टान पर चढ़ कर फाँसी का फंदा तैयार किया होगा।
सबसे पहले बीरबल ने गाँव के उन व्यक्तियों से बात की, जो वहां सबसे पहले पहुंचे थे। उन्होंने पूछा, “क्या किसी ने किसी अजनबी को यहां पर पहले देखा था?”
गाँववाले बोले, “नहीं, हमने किसी अजनबी को इस क्षेत्र में नहीं देखा।”
बीरबल ने पेड़ के चारों ओर गहन निरीक्षण किया और कुछ महत्वपूर्ण सबूतों को नोट किया। इसके बाद उन्होंने पेड़ से लटके आदमी का निरीक्षण किया, जिससे स्पष्ट हुआ कि यह आत्महत्या का मामला था।
वापस लौटे बीरबल ने अकबर के दरबार में सारी बातें बताईं और स्पष्ट किया, “महाराज! यह व्यक्ति दोषी नहीं है। पेड़ की ऊँचाई और चट्टान का निरीक्षण करने पर यह स्पष्ट हुआ कि वह मृतक आत्महत्या करने के इरादे से अपने आप पेड़ पर चढ़ा था और फाँसी लगाई। वहाँ कोई संघर्ष के निशान नहीं थे, जिससे स्पष्ट होता है कि कोई बाहरी व्यक्ति वहां मौजूद नहीं था।”
बीरबल के स्पष्ट व्याख्यान से अकबर बादशाह ने व्यक्ति को निर्दोष घोषित किया और आदेश दिया कि गाँव वालों को यह बताया जाए कि यह आत्महत्या का मामला था और निर्दोष व्यक्ति को परेशान न किया जाए।
इस प्रकार, बीरबल की बुद्धिमत्ता और न्यायप्रियता से एक निर्दोष व्यक्ति को न्याय मिला और गाँव के लोगों के समक्ष एक महत्वपूर्ण सच्चाई आयी।
यह कहानी हमें सिखाती है कि कठिन परिस्थितियों में भी हमें सूझबूझ और दृढ़ संकल्प से काम लेना चाहिए, जिससे सही निर्णय लिया जा सके और सच्चाई की जीत हो सके।