इस आर्टिकल में आप पढेंगे, एक प्रेरणादायक कहानी (Motivational Hindi Story) जिसका नाम है, अनोखी अतिथि-सेवा. इस कहानी से ख़ास तौर पर बच्चों को बहुत कुछ सीखने को मिलता है.
अनोखी अतिथि-सेवा
बहुत समय पहले की बात है, एक घने वन में एक बहेलिया शिकार की खोज में इधर-उधर भटक रहा था । – सुबह से शाम तक भटकने के बाद एक कबूतरी जैसे-तैसे उसके हाथ लग गई । कुछ ही क्षणों बाद तेज वर्षा होने लगी । सर्दी से कांपता हुआ बहेलिया वर्षा से बचने के लिए एक वृक्ष के नीचे आकर बैठ गया । कुछ देर बाद वर्षा थम गई । उसी वृक्ष की शाखा पर बैठा कबूतर अपनी कबूतरी के वापस लौटकर न आने पर दुखी होकर विलाप कर रहा था ।
पति के विलाप को सुनकर उसी वृक्ष के नीचे बैठे बहेलिए के बंधन में फंसी कबूतरी अपने आपको धन्य मानते हुए बोली- ‘ स्वामी, मेरे लिए अपने मन को दुखी न करो, मुझे मालूम है कि तुम मुझसे कितना प्रेम करते हो । तुम्हारा विलाप सुनकर मेरा मन तड़प उठा है । ‘ कबूतरी की आवाज सुनकर कबूतर ने शाख से नीचे देखा, उसकी पत्नी बहेलिए के बंधन में थी । ‘ तुम यहां हो । ‘ उसे देख कबूतर खुशी से झूमकर कह उठा । ‘ हां स्वामी! अब आप मेरे लिए सोचना छोड्कर ध्यानपूर्वक मेरी बात ‘ ।
यह वृक्ष हमारा निवास है और यह बहेलिया इसकी छत्रछाया में बैठा हमारा शरणागत अतिथि है, यह भूख और प्यास से व्याकुल ७, । इसकी सेवा करना हमारा धर्म है । आप यह कदापि मत सोचिए कि इसने आपकी पत्नी को बंदी बना रखा है । इसलिए मेरे बंधन की बात भूलकर आप इस बहेलिए का यथोचित सत्कार करके अपने कर्त्तव्य का निर्वाह करें । ‘ कबूतरी ने अपनी इच्छा प्रकट की ।
पत्नी की इच्छानुसार बड़े ही शांत स्वर में बहेलिए के पास आकर कबूतर ने कहा- ‘ श्रीमान! हमारे निवास में आपका स्वागत है, आप मेरे अतिथि हैं । मुझे बताइए कि मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं? अतिथि भगवान का रूप होता है, उसकी सेवा करना हर गृहस्थ का कर्त्तव्य है । ‘ ‘ वर्षा हो चुकने के कारण तेज और ठण्डी हवाएं चल रही हैं, जिससे मुझे काफी ठण्ड लग रही है ।
किसी प्रकार मुझे ठण्ड से बचाने की व्यवस्था करें । ‘ बहेलिए ने कहा । बहेलिए की बात सुनकर कबूतर ने उड़ान भरी और थोड़ी ही देर में उसके आगे सूखी लकड़ियों का ढेर लगा दिया और फिर कहीं से उतारा लाकर उन लकड़ियों में आग लगा दी । उरण की गर्मी से बहेलिए को काफी आराम मिला और उसकी ठण्ड जाती रही ।
वह अपने आपको काफी प्रसन्न और स्वस्थ अनुभव करने लगा । ‘ मैं कितना अभागा हूं कि घर आए अतिथि को खिलाने के लिए मेरे पास इस वक्त कुछ भी उपलब्ध नहीं है । ‘ कबूतर ने अपनी बेबसी जताई । ‘ अतिथि का स्वागत-सम्मान करना ही बहुत है । भूख तो बर्दाश्त की जा सकती है लेकिन अपमान नहीं । ‘ बहेलिए ने कहा । ‘ श्रीमान! आप चिंता न करें, मैं अपने आपको आग में झोंकता हूं ।
आप मेरा मांस खाकर अपनी भूख शांत करें । ‘ यह कहकर कबूतर ने अपने को आग में झोंक दिया । पति के आत्मदाह कर लेने से कबूतरी भी अपने जीवन को व्यर्थ मानती हुई रोती-बिलखती उसी अग्नि में प्रविष्ट हो गई । कबूतर और कबूतरी द्वारा जलकर अपने प्राण त्याग देने से बहेलिया काफी दुखी हुआ । उसने सोचा कि इनकी मौत का जिम्मेदार वह है । इसलिए उसने घर जाकर सुख भोगने का विचार हमेशा के लिए त्याग दिया और घने वन में जाकर कन्द-मूल व फल खाकर अपना जीवन व्यतीत करने लगा ।
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